मोड़...मोहब्बत का...

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By Surjeet Kumar

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ज़िन्दगी की दौड़ में अनेक दौर आते है, खुशियों का दौर, गमों का दौर, हसने का दौर, रोने का दौर, गवाने का दौर, कमाने का दौर और अनेकों ऐसे दौर जिसमे हम दिन - रात बिताते है, जीते है और एक बार को सभी दौरों को भूल जाते है।
हम सबकी ज़िन्दगी में एक वो मोड़ भी आता जहाँ लगता है यही बंदगी है, जहाँ लगता है यही सुकून है, जहाँ लगता है वक्त जैसे थम सा गया है, सब कुछ जैसे बदलने सा लगा है, लगता है ज़िन्दगी करवट ले रही है, लगता है जैसे ज़िंदगी को इसी पल का इंतज़ार था; फिर भले उस मोड़ पर आगे रूठना हो, मनाना हो, उनको गुदगुदाना हो, उनकी बाहों में खो जाना हो, या फिर उनके कंधे पर सिर रख कर उन्हें सब कुछ बताना हो और सब कुछ भूल कर बस उनका हो जाना हो।
उसी मोड़ का नाम होता है "मोड़...मोहब्बत का...!"
प्रस्तुत पुस्तक में इसी हसीन मोड़ पर लिखी हुई पंक्तियों को कविताओं को रूप देकर आप सब को रोमांचित करते हुए आप सबके समक्ष अपनी बात रखने का प्रयत्न कर रहा हूँ।

मोड़...मोहब्बत का...