मानव विकास का मनोविज्ञान खण्ड--2 (Manava Vikāsa kā Manovijñana Volume-2)

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By लालबचन त्रिपाठी

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प्रस्तुत पुस्तक में जीवनपर्यन्त होने वाले विकास संरूपों एवं प्रक्रमों की विस्तृत व्याख्या की गयी है। दो भागों में व्यवस्थित इस पुस्तक में पांच प्रमुख अनुभाग हैं। इसके प्रथम भाग में मानव विकास के स्वरूप, नियम एवं अवस्थाओं, अध्ययन पद्धतियों, विकास की आधारशिला और गर्भाधान से लेकर शैशवावस्था तक होने वाले शारीरिक, पेशीय, स्नायविक, सांवेदिक, संज्ञानात्मक, सामाजिक एवं व्यक्तित्व विकास के उपागमों व प्रक्रमों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। पुस्तक के भाग-दो में बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक एवं पेशीय विकास, संज्ञानात्मक तथा बौद्धिक विकास, भाषा विकास, सामाजिक, सांवेदिक एवं व्यक्तित्व विकास, नैतिक विकास की चर्चा की गयी है। इसमें शारीरिक एवं संज्ञानात्मक परिवर्तन, सामाजिक एवं व्यक्तित्व परिवर्तन, और मृत्यु एवं वियोग के सैद्धान्तिक उपागमों एवं मनोवैज्ञानिक प्रक्रमों का भी विश्लेषण किया गया है।
मानव विकास का मनोविज्ञान खण्ड--2 (Manava Vikāsa kā Manovijñana Volume-2)