महात्मा गांधी-विचार-वीथिका (Mahātmā Gāṃdhī-Vicāra-Vīthikā )
ebook ∣ Gandhian Studies for Peace and Research Series
By सुरेन्द्र प्रसाद अग्रवाल (Surendra Prasāda Agravāla)
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लगभग 53 साल पहले संसार में एक अजूबा घटा था। एक लंगोटधारी दुबले-से महात्मा के नेतृत्व में अहिंसा की लड़ाई की परिणति हुई थी 14 अगस्त को रात बारह बजे - भारत की आज़ादी के रूप में । पूरा भारत उनके जयजयकार से गूंज रहा था पर वे स्वयं साम्प्रदायिकता की घिनौनी लड़ाई से बंगाल में जूझ रहे थे। ऐसे विलक्षण व्यक्ति के, जिसे विश्व के अनेक संगठनों ने पूरी सहस्राब्दि का सन्त सिरमौर माना है, विचारों की झलक है यह पुस्तक । पुस्तक में लेखक द्वारा गांधी जी पर लेखों का संकलन, उनका जीवन-दर्शन, उनके 'विविध आयाम' तथा 'मील के पत्थर' शीर्षकों में दी गई छोटी-छोटी घटनाएँ बातों की भी उम्र होती है, कुछ बातें पैदा होते ही मर जाती हैं, कुछ थोड़े समय जीवित रह पाती हैं पर कुछ बातों में मानवता के शाश्वत स्वर बोलते हैं और ऐसे स्वरों का उत्स है महात्मा गांधी-जैसे उनके ये वाक्य- "किसी अधभूखी कौम के लिए न कोई धर्म हो सकता है, न कला, न कोई संगठन ... मुझे ऐसी कला चाहिए, साहित्य चाहिए जो लाखों करोड़ों लोगों से मुखातिब हो सके .... मेरा एक ही लक्ष्य है-हर आँख से आँसू पोंछ डालो।" आज तो आवा का आवा ही बिगड़ गया है। नाम तो लीजिए किसी एक दल का जो भाईभतीजावाद, भ्रष्टाचार, पक्षपात, लूट-खसोट से पूरी तरह दूर हो । इन बुराइयों का एकमात्र समाधान है-गांधीवाद, नहीं तो आप बबूल के पेड़ से आम लेने का सपना संजो रहे हैं। प्रस्तुत पुस्तक एक महान् अभियान की दिशा में बौना प्रयास है।