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स्तुत संकलन राजस्थानी भक्ति व लोक साहित्य परंपरा की सशक्त कड़ी है। अपने इष्टदेव को समर्पित रचनाओं में सरल विश्वास व सहज काव्यानुभूति का मनोहारी समावेश है। अन्य रचनाएं नित्य जीवन की घटनाएँ, सामाजिक आचार-व्यवहार व लोक कथाओं पर आधारित हैं। विषय के अनुसार भाषा का सौष्ठव, उतार-चढ़ाव, व्यंगपरिहास, राजस्थानी-व्रज-खड़ी बोली का अपूर्व मिलन अपने आप में एक सफल प्रयोग है। शब्दजाल व कृत्रिम नक्काशी से दूर इस संकलन की सजीव रचनाएं पाठक के अंतर्मन में पैठ जाती हैं। यही स्वयंस्फूर्त काव्य का गुण है, उसकी अंतिम सफलता का द्योतक है। देवत्याँ के गीत निःसेदेह पठनीय काव्यसंग्रह है। अभिजात साहित्य की कसौटी पर खरा उतरना न इसके लिए आवश्यक है, न ही कवयित्रि-त्रय का ध्येय रहा है। पाठकवृंद इसका मूल्यांकन अपने हृदय से करेगें, विवेक-बुद्धि के तर्क से नहीं। वैसे तो इर इस पुस्तक का नया संस्करण निकालने का कोई विचार था ही नहीं. किन्त पाठकों के उत्सवों और त्योहारों पर अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होने के कारण उनकी मांग को देखते हुये इसका संशोधित एवं विस्तृत संस्करण निकाला गया है। इसमें बहुत से नये गीत जोड़े गये हैं जबकि पिछली त्रुटियों को दूर करने की कोशिश की गई है। आशा है, पाठकगण इस प्रयास को सराहेगें। विद्या देवी, मधुबाला व मोनिका मित्तल सुखी सद्गृहणियां हैं, कवयित्री होने का उन्हें अभिमान नहीं है। प्रत्येक संवेदनशील व्यक्ति में जो मूक कवि छुपा होता है यह कविताएँ उसी की अभिव्यक्ति हैं। अपने गृहस्थी के काम-काज के बीच ही विद्या देवी व मधुबाला ने इनकी रचना की। प्रकाशन उनका उद्देश्य नहीं था। परन्तु इसके रसास्वादन से पाठकों को वंचित रखना प्रकाशन धर्म के विरूध होता। अतः रचनाएँ पुस्तकाकार में प्रस्तुत हैं सभी पाठकों की सेवा में। मोनिका मित्तल ने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की है। यह एक कुशल गृहणी हैं, इस पुस्तक के संशोधित संस्करण में इनका अधिक योगदान है।