आयुर्वेद का सैद्धान्तिक अध्ययन (Ayurveda Kā Saiddhāntika Adhyayana)

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By वैद्य भगवान दाश

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आधुनिक चिकित्सा पद्धति के विविध पक्षों के अति उन्नत होने पर भी दमा, गठिया, मधुमेह, उच्च रक्त-चाप जैसे अनेक रोग आज भी असाध्य माने जा रहे हैं। जिन रोगों का उपचार सम्भव भी है, उनकी औषधियों के सेवन से होने वाले आनुषंगिक दुष्प्रभाव (side effect) के कारण अनेक प्रकार के उपद्रव उत्पन्न हो जाते हैं। कई बार तो ये उपद्रव मूल रोग की अपेक्षा और भी अधिक कष्टकर तथा असाध्य होते हैं। ऐसी स्थिति में भारतीय परिवेश में विकसित आयुर्वेदिक चिकित्सा का महत्व बहुत बढ़ जाता है। यही कारण है कि विदेशों में भी यह चिकित्सा पद्धति लोकप्रिय होती जा रही है। स्वाभाविक है कि आयुर्वेद-विषयक सिद्धान्तों के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो। परन्तु इन सिद्धान्तों का ज्ञान प्रदान करने वाले आयुर्वेद के मौलिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में तथा सूत्र रूप में हैं। अतः इनके माध्यम से इन सिद्धान्तों के विषय में ज्ञान प्राप्त करना जनसामान्य के लिए अत्यंत दुष्कर है। इसलिए सरल एवं स्पष्ट भाषा में इन सिद्धान्तों को प्रकट करने वाली पुस्तक का अभाव था। इस अभाव की पूर्ति करने के लिए प्रस्तुत कृति की रचना आवश्यक थी। तेरह अध्यायों में विभक्त इस पुस्तक में आयुर्वेद के सिद्धान्त-विषयक समस्त बिन्दुओं का विवेचन करने का प्रयास किया गया है। इस कारण यह पुस्तक आयुर्वेद के विद्यार्थियों के लिए अनायास उपयोगी बन गई है। इसके साथ-साथ आयुर्वेद के जिज्ञासुओं और अनुसन्धानकर्ताओं के लिए भी यह समानरूपेण उपयोगी है।
आयुर्वेद का सैद्धान्तिक अध्ययन (Ayurveda Kā Saiddhāntika Adhyayana)