अनुसूचित जातियों का मानवाधिकार भूगोल (Anusūcita Jātiyoṃ kā Mānavādhikāra Bhūgola)

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By तुलसी दास पासवान (Tulasī Dāsa Pāsavāna)

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प्रस्तुत पुस्तक अनुसूचित जाति के मानवाधिकारों के आयामों के भौगोलिक विस्तार के परीक्षण से संबंधित है। अध्ययन क्षेत्र पूर्वी उत्तर प्रदेश के तमकुही राज तहसील (जनपद कुशीनगर) में चमार, कहार, डोम, धोबी, भंगी, हलालखोर, दुसाध जैसे अनुसूचित जातियों के निवास की गुणवत्ता, जीवनस्तर, बीमारी, भुखमरी, ऋणग्रस्तता, बेरोजगारी, कृषि संसाधनों की सीमान्तता, भूस्वामित्व का खोखलापन आदि को प्रकाश में लाती है। अनुसूचित जातियां बंधुआ मजदूरी के प्रत्यक्ष रूप पैतृक व्यवसायों में अधिकतर संलग्न हैं। पुस्तक में संबंधित क्षेत्र के कृषि प्रदेशों में अनुसूचित जातियों की सहभागिता, मानवाधिकार की वंचना, संसाधनों की सीमांतता जैसे तथ्यों के भौगोलिक वितरण का परीक्षण कर यह स्पष्ट करता है कि मानवाधिकारों पर पिछले पचास वर्षों में किये गये प्रयास अधूरे हैं। पुस्तक नियोजन नीति के दर्शन एवं कार्यान्वयन के आमूल-चूल परिवर्तन की मांग करती है। क्षेत्र के 29 प्रतिचयित ग्रामों से अनुभवपरक उदाहरण तालिकाओं, मानचित्रों आदि के द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं। भूगोल की दो, नवोदित शाखाओं, भूस्वामित्व भूगोल एवं मानवाधिकार भूगोल, की संकल्पनाएँ प्रस्तुत की गई हैं। आशा की जाती है कि पुस्तक भूगोल शोधार्थियों के अलावा चिन्तकों, समाजसेवियों, प्रशासनिकों, नीति निर्धारकों एवं राजनेताओं के लिए उपयोगी सिद्ध होगी तथा दलितों के उत्थान हेतु जमीनी प्रयासों के कार्यान्वयन हेतु प्रेरित करेगी।
अनुसूचित जातियों का मानवाधिकार भूगोल (Anusūcita Jātiyoṃ kā Mānavādhikāra Bhūgola)