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अरुणा एक उच्च मध्यम वर्गीय परिवार में सन् 1948 में पैदा हुई थीं। अपने जीवन के प्रारम्भिक दिनों से ही उन्हें पढ़ने व नई चीजें सीखने का शौक था। वे अपनी माँ के चरित्र से बहुत प्रभावित थी। उनकी माँ का बाल विवाह हुआ था। उन्होंने पाँच संतानें हो जाने के बाद अपनी शिक्षा पूर्ण की व प्रिंसिपल के पद से सेवा निवृत्त हुई। उनकी प्रेरणा व । मार्गदर्शन में ही अरुणा अपने जीवन का ध्येय पाने में सफल हुईं।
अरुणा का पुस्तक प्रेम व ज्ञान पिपास होना उन्हें उनके जीवन के लक्ष्य तक ले गया। इसके कारण उनमें धार्मिक, ऐतिहासिक व सामाजिक पुस्तकें पढ़ने व खोज करने की जिज्ञासा बढ़ी। फलस्वरूप इस क्षेत्र में आगे बढ़कर उन्होंने पौराणिक पुस्तकें भी लिखीं।
उन्होंने एम. एससी. कैमेस्ट्री में ग्वालियर यूनिवर्सिटी में तृतीय स्थान प्राप्त किया था। उन्हें पीएच. डी. में दखिला मिल गया साथ ही डी. आर. एल. एम. में नौकरी भी मिली। परन्तु उन्होंने एक अलग पथ, मातृत्व के पथ पर बढ़ना। पसन्द किया व उसमें सफल भी हुई। बच्चों के सजग हो जाने के उपरान्त उन्होंने 10 साल एक कम्पनी में मैनेजर के पद का कार्य भी सम्भाला।
आर्मी अफसर की पत्नी होने के कारण उन्हें लगभग सम्पूर्ण भारत व विदेश में भी रहने का अवसर मिला जिससे उनके ज्ञान की प्यास भी बुझी। उन्हें जब भी। अवसर मिला उन्होंने अपनी संस्कृति, इतिहास व पौराणिक ज्ञान को बढ़ाने के लिए कई धार्मिक यात्राएं भी की। उन्होंने अपने जीवन की दूसरी पारी में। अपने सत्तरखें दशक में अपनी प्रतिभा को गृहणी होने के साथ-साथ लेखिका होने के दायित्व निभाने में लगाया।
उनकी किताबें "रामायण समय की कसौटी पर",