संक्षिप्त श्रीमद्भगवद्गीता (Saṃkṣipta Srīmadbhagavadgītā)

ebook

By डॉ. जे. पी. सिंह (Dr. J. P. Singh)

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गीता किसी विशिष्ट व्यक्ति, जाति, वर्ग, पंथ, देश-काल या किसी रूढ़िग्रस्त सम्प्रदाय का ग्रन्थ नहीं, बल्कि यह सार्वलौकिक, सार्वकालिक धर्मग्रन्थ है। यह प्रत्येक देश, प्रत्येक जाति तथा प्रत्येक स्तर के प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए है। श्रीमद्भगवद्गीता हिन्दुओं का ग्रन्थ अवश्य है, लेकिन इसे मात्र हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। गीता में जिस जीवन-दर्शन का प्रतिपादन हुआ है वह समस्त मानवजाति के लिए है। गीता सार्वभौम धार्मग्रन्थ है। धर्म के नाम पर प्रचलित विश्व के समस्त ग्रन्थों में गीता का स्थान अद्वितीय है। यह स्वयं में धर्मशास्त्र ही नहीं बल्कि अन्य धर्मग्रन्थों में निहित सत्य का मानदण्ड भी है। गीता वह कसौटी है, जिस पर प्रत्येक धर्मग्रन्थ में वर्णित सत्य अनावृत हो उठता है और परस्पर विरोधी कथनों का समाधान निकल आता है। गीता में जिस जीवन-दर्शन का प्रतिपादन हुआ है, वह निश्चित रूप से अतुलनीय है। इस पुस्तिका को हर समुदाय और विचारधारा के लोगों के द्वारा अध्ययन और चिन्तन किया जाना चाहिए। इस पुस्तक में यही प्रयास किया गया है कि गीता के उपदेशों को सरलतम भाषा में आम पाठकों तक बिना किसी पूर्वाग्रह के पहुंचाया जाये।
संक्षिप्त श्रीमद्भगवद्गीता (Saṃkṣipta Srīmadbhagavadgītā)