Chauri Chaura Kaand

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By Kewal Prasad Satyam

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वर्ष २०२२ को 'चौरी-चौरा काण्ड का शताब्दी वर्ष' मनाये जाने को लेकर हर भारतीय के दिलों में दीपावली जैसा त्यौहार उमंगें ले रहा है। इस उत्साह को लेकर हम लेखक भी कम उत्साहित नहींं हैं। लगातार पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों में लेख और कॉलम छप रहे हैं। इस अवसर पर अंग्रेज़ों द्वारा भारतीयों पर किए गये तत्कालीन अत्याचार, यातनाएँ और नरसंहार के इतिहास की सच्चाई को समस्त भारतीयों के समक्ष लाना,एक सच्चे देश प्रेमी का ही कार्य हो सकता है, किन्तु बिल्ली के गले में घंटी कौन बाँधे ? यहाँ तो देश का नागरिक ही संशय में है कि वह एक भारतीय है अथवा नहींं? वास्तव में हमें किसी भी तथ्य को प्रकट करने के लिए बहुत ही धैर्य, साहस, इतिहास की परख और ईश्वर में विश्वास रखना होता है। साथ ही साथ शासकीय नियमों और गोपनीयता का ससम्मान अनुपालन भी करना होता है। मेरे द्वारा यह निर्णय लिया जाना कि मैं भी इस काण्ड के रहस्य में अपने देश के सच्चे शहीदों को हृदय से नमन करना चाहता हूँ, तो सच मानिए, हमारे साथ ही इस वातावरण के प्रत्येक कण ने सहर्ष स्वागत अभिनन्दन ही किया। यहाँ तक कि मानव रूपी देव-देवियाँ भी सहचर बनकर सहयोग करने में तनिक भी नहींं हिचकिचाए।

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