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प्रस्तुत पुस्तक ' कुसुम ' सतरह कहानियों का संग्रह है , जो अपने आप में संपूर्ण ग्रामीण परिवेश को संजोए हुए हैं । कहानियाँ प्रेरणादायक व उद्देश्यपरक है। कहानियों में झारखंड प्रदेश के नदी तटों , जंगलों , पहाड़ों , सुदूरवर्ती कंदराओं में बसने वाले जनजातियों के श्रमसाध्य जीवन शैली किंतु सुखद व तुष्ट जीवनचर्या के बीच यहाँ के लोक-संस्कृति का जीवंत चित्रण है । अशिक्षा , अंधविश्वास , बेरोजगारी , नशापान जैसे अभिशाप के बीच भी यहाँ के लोगों के हृदय में सादगी , सच्चाई , ईमानदारी , मानवता का ज्योत सदा से जलती आ रही है। शिक्षा और सभ्यता के नाम पर स्वार्थ , कुटिलता , भ्रष्टाचार व वैमनस्यता जैसे विनाशकारी शहरी सभ्यता से दूर है । हम मनुष्यों के सहजीवी पशुओं , जंगली जानवरों और पक्षियों के संवेदनाओं , मनोभावों को भी बहुत ही स्वाभाविक व सरल तरीके से व्यक्त करने में लेखक ने अपनी उम्दा रचना शैली के माध्यम से पाठकों के हृदय को उद्वेलित करने में सफलता पाई है। कुछ कहानियाँ तो हृदय में गहरी वेदना के साथ-साथ आँखों में आँसू भी छलका जाती है । बेशक लेखक ने कहानियों के माध्यम से इस पुस्तक को एक मनोरम गुलदस्ता बनाने में शायद कोई कसर नहीं रख छोड़ा है । जिसके विभिन्न मनोभाव के कहानियों की महक पाठक के हृदय में हमेशा के लिए रच-बस जाता है।