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डायमंड बुक्स ने अपने स्थापना वर्ष 1948 ई. से लेकर आज तक हर वर्ग के लेखकों को छापा है और निचले, दबे-कुचले तबके के लेखकों को उभरने का मंच प्रदान किया है। हम अपने लंबे गौरवशाली इतिहास और एक विशाल विरासत के साथ हर विधा में कई भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित करते आ रहे हैं। इसी कड़ी में हम इस बार इसी वर्ग के एक युवा प्रतिभाशाली लेखक राकेश शंकर भारती को लेकर आ रहे हैं। 4 फरवरी 1986 ई. को पिता प्रेमशंकर यादव और माता उर्मिला यादव के घर में बिहार के सहरसा जिले के बैजनाथपुर गाँव में जन्मे राकेश शंकर भारती का रचना संसार बहुत ही विशाल है। बिहार के एक छोटे से गाँव से एक निर्धन परिवार से निकलकर अपने दम और साहस पर दिल्ली के जे. एन. यू. तक सफर, फिर वहाँ से पूर्वी यूरोप तक का सफर अभाव, फटेहाली, संघर्ष, दुख, कष्ट, रोमाँच, प्रेम वगैरह से लबालब है। जहाँ एक तरफ लेखक बचपन की घोर गरीबी से लोहा लेते हुए इतना लंबा सफर तय करते हैं, वहीं दूसरी तरफ उन्हें अपनी मिट्टी से भी गहरा लगाव है, अपनी मिट्टी के लिए उनकी आँखों में पानी है। उन्हें आज भी अपने फटेहाल बचपन के चरवाहे जीवन से वही लगाव है। ऐसे लेखक हमेशा अपने मिट्टी और धरातल से जुड़कर ही बातें करना पसंद करते हैं। इसी के फलस्वरूप उनकी रचना में इतनी ज्यादा विविधताएँ पायी जाती हैं। जहाँ उन्होंने एक तरफ भारतीय समाज के उपेक्षित वर्गों पर बेवाकी से कलम चलायी है तो वहीं दूसरी तरफ उनकी लेखनी में पूर्वी यूरोप, रूस, यूक्रेन के समाज की खुशबू भी आती है।वे अपनी रचना में नवीनता लाने और नये-नये प्रयोग करने में यकीन रखते हैं। वे समाज के संजीदा अनछुए पहलुओं को उठाने का माद्दा रखते हैं। आज जहाँ उनकी लेखनी ने थर्ड जेंडर विमर्श को नया आयाम दिया है, वहीं दूसरी तरफ 3020 ई. जैसे साइंस फिक्शन से हिंदी साहित्य में गद्य की विधा में एक नया अनोखा प्रयोग भी किया है। कोठा नं. 64 के माध्यम से वेश्या-जीवन के संघर्षों का बहुत ही बारीकी से विश्लेषण किया है। इस जिंदगी के उस पार के साथ थर्ड जेंडर विमर्श में पहला मौलिक कहानी संग्रह दिया है। पूर्वी यूरोप और खासकर यूक्रेन के समाज में रहकर किसी पहले प्रवासी भारतीय लेखक ने नीली आँखें के माध्यम से कलम चलायी है।
इस बार डायमंड बुक्स प्रतिभाशाली प्रवासी लेखक राकेश शंकर भारती का सबसे नया उपन्यास जिंदगी एक जंजीर लेकर प्रिय पाठकों के समक्ष आ रहा है। हम अब एक एक नये विमर्श की शुरुआत भी करने जा रहे हैं। हमारी समझ और जानकारी के हिसाब से जिंदगी एक जंजीर थर्ड जेंडर और LGBT समुदाय पर पहला कोई संपूर्ण उपन्यास है जिसमें थर्ड जेंडर और LGBT समुदाय के हर उपवर्ग लेस्बियन, गे, बायसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर की समस्याओं पर इतनी गहराई से बातें रखी गयी हैं। इससे पहले के सभी उपन्यासों में किसी एक-दो पक्षों पर ही चर्चा हुई है। वे ट्रांसववुमेन या किन्नर समुदाय तक ही सीमित रहे। भारती जी ने इस उपन्यास के माध्यम से थर्ड जेंडर और LGBT विमर्श को नया आयाम दिया है। हम थर्ड जेंडर और LGBT समुदाय पर शोध कर रहे शोधार्थियों को भी ध्यान में रखकर यह उपन्यास ला रहे हैं। शोधार्थियों और अध्यापकों की शिकायत थी कि हिंदी में ट्रांसमेन पर कोई उपन्यास नहीं है। हमने उनका खास ध्यान रखा है और यह उपन्यास लाकर उनका सम्मान भी किया है। युवा पाठक वर्गों को भी अब हिंदी में एक नये और अनोखे विषय पर उपन्यास पढ़ने का मौका मिलेगा। सभी पाठक मित्रों को ढेर सारी शुभकामनाएँ! आगे भी आपका प्रेम हमारे साथ यूँ ही बना रहे!