स्वीकृति

ebook (कहानी आत्मग्लानि की )

By Dimple Titra

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यह कहानी है विक्रांत की जो अपना पूरा जीवन मौज-मस्ती के साथ बिना किसी बंधन में बंधे जीना चाहता है । मगर बाद में वो अंजली से प्यार कर बैठता है । उन दोनों का प्यार कुछ ही समय तक एक बेहतरीन प्रेम कहानी की तरह चलता है क्योकि शालिनी के आ जाने के बाद सब बदल जाता है । उसके बाद तीनो की ज़िंदगी पूरी तरह बदल जाती है और उन्हें कई उतार-चढ़ाव देखने पड़ते है । ये कहानी प्यार , विश्वास , धोखा और आत्मग्लानी का सटीक मिश्रण है । कहानी पूरे समय रुचिपूर्ण बनी रहती है और पाठको को बोर होने का मौका नहीं देती ।

"मेरी माँ ज़िंदगी की जंग हार गई । ये बात सुन गुड़िआ तो खड़े-खड़े ही ज़मीन पर गिर गई और मै कुछ पल के लिए पत्थर की तरह जम गया । मै चुप था और आँखों से आँसू गिर रहे थे । पापा की मौत के वक़्त भी मेरी हिम्मत इतनी ना टूटी थी जितना बरबाद मै खुद को उस समय महसूस कर रहा था । उस एक पल में मुझे अपनी पूरी दुनिया खत्म सी लगी । ऐसा लगा जीने का मकसद ही माँ के साथ चला गया हो ।
मेरी मासी मेरे गले से लगकर दहाड़े मार-मार के रोने लगी । मेरी नज़र शलिनी की तरफ पड़ी तो वो चुपचाप अपने माँ-बाप के साथ बेंच पर मुँह लटकाये बैठी थी । उस समय मुझे अंजली इतनी याद आई की मै सीना चीर कर ही किसी को दिखाता तो ही वो समझ पाता । अंजली मेरे घर का हिस्सा बनी भी नहीं थी तब भी मेरे पापा की खबर कुछ दिन बाद सुनकर भी वो बिलख-बिलख कर रो रही थी । कैसे उसने खुद अपनी सजल आँखों के बावजूद भी मेरे आंसू पोछे थे । कैसे उसने मुझे महीनो तक इस बात पर बड़े प्यार और सब्र से दिलासा दिलाया था । आज तो वो भी साथ नहीं थी जो मेरे ऊपर गिरे इस पहाड़ से मुझे थोड़ा तो उबार लेती । शालिनी से मुझे न कल कोई उम्मीद थी ना उस दिन क्योकि मेरी माँ की मौत पर जिसकी खुद की आँखे नम तक ना हुई थी वो मेरे आंसू क्या समझ पाती ।

स्वीकृति