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यह संग्रह मंटो की कुछ बेहतरीन कहानियों को एक साथ लाता है, जिसमें उनके विभाजन की भयावहता से लेकर अंडरवर्ल्ड के उनके चित्रण तक का वर्णन है। मंटो ने अपने जीवन काल में समाज की जिस गंदगी और घिनौनेपन का अनुभव किया तथा जिंदगी के जहर को महसूस कियाए उसे ही अपनी कहानियों में उतारा। मंटो की कहानियां एक अर्थ में मनोवैज्ञानिक सनसनी पैदा करने वाली कहानियां हैं। इसमें समाज के दलितए उत्पीड़ित लोगों की मजबूरियों व उनके दुःख-दर्द को पूरी ईमानदारी से उकेरने की कोशिश की गई है । उनके वर्णन से जो ध्वनि निकलती हैए वह असाधारण रूप से जीने-मरने की कला और इन दोनों के बीच संघर्ष को व्यक्त करती है। उनकी कहानियों के मुख्य पात्र वे यातना भोगती आत्माएं है जो कमजोर जिस्म लेकर भी अपने फौलादी इरादों के बल-बूते पर कट्टर सम्प्रदायवाद के खिलाफ लड़ती हैं । शक्तिशाली और गहराई से आगे बढ़ते हुए, ये कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं, जितनी आज पहली बार प्रकाशित हुई थीं। मंटो की २५ श्रेष्ठ कहानियां के माध्यम से उनकी श्रेष्ठ कहानियों को चुनने की कोशिश की गई है जो दुनिया की विभिन्न भाषाओं में अनुदित हुई हैं । आशा है कि यह संकलन पाठकों को बेहद पसंद आएगा। पुस्तक में शामिल कहानियों की सूची का उल्लेख किया गया है जो इस प्रकार है, "खोल दो", "काली सलवार", "ठंडा गोश्त", "टोबा टेकसिंह", "बू", "टिटवाल का कुत्ता", "1919 की एक बात", "आँखें", "आर्टिस्ट लोग", "आख़िरी सल्यूट", "औरत ज़ात", "नया क़ानून", "धुआँ", "बादशाहत का ख़ात्मा", "जिस्म और रूह", "गुरमुख सिंह की वसीयत", "सड़क के किनारे", "बी-ज़मानी बेगम", "हारता चला गया", डॉक्टर शिरोडकर", "साढ़े तीन आने", "तीन मोटी औरतें", "इंक़िलाब-पसंद", "ना-मुकम्मल तहरीर", "बलवंत सिंह मजेठिया".