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इस पुस्तक में मिलन की मंगल वेला का जीवंत चित्रण किया गया है। पालनहार विष्णु तथा जगतजननी माता लक्ष्मी जी का त्रेता युग में राम-सिया के रूप में अवतार हुआ, यहाँ इहलोक में हुए प्रथम मिलन का जीवंत एवं अत्यंत मनोहर चित्रण किया गया है। किस प्रकार मर्यादापुरुषोत्तम, धीर-गंभीर राम की छवि माता जानकी के हृदय में इस भांति बस गयी कि वह उन्हीं की कामना करती हैं- "मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर सावरो। करुणा निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो॥" प्रथम मिलन से विवाहोत्सव तथा छोटी-से-छोटी हँसी-ठिठोलियाँ एवं मंगल क्षणों का सजीव वर्णन किया गया है, जो पाठक को रोमांचित एवं उमंग से भर देता है।