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स्वर्गविभा ऑन लाइन पत्रिका सितम्बर 2021 के बीसवां अंक के साथ हिंदी जगत के सामने विनयावनत भाव से समुपस्थित हूँ| प्रसन्नता की बात है, स्वर्गविभा साइट निरंतर ऊँचे शिखर की ओर बढ़ती जा रही है| हिंदी की बढ़ती शक्ति से विश्व जन-जन की संकल्प शक्ति को उदग्रीव बनाने में सफलता प्राप्त हो रही है| अफ़सोस इस बात का है, कि आजादी के 70 वर्ष बाद भी हिंदी की प्राण प्रतिष्ठा नहीं की जा सकी है| कारण लोकतंत्र में फैसले सर्वस्वीकार्यता से नहीं बल्कि बहुमत से लिए जाते हैं| किन्तु बहुमत से लिए गए निर्णयों की अस्वीकार्यता व उनके प्रति जनमानस की उदासीनता लोकतंत्र की असफलता की ओर संकेत करती है|
साहित्य पर विचार करने पर यह परिलक्षित होता है कि इसमें परम्परा और प्रयोग की प्रबल आकांक्षा रही है| यह अंग्रेजी भाषा की तरह भारत की सीमाओं से परे, एशिया साहित्य, विश्व के अधिकतर देशों में हिंदी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है| हिंदी की आधुनिकता न तो उधार की है, न ही आयातित है| इसे विश्व मानव की चाहत और स्नेह बिशिष्ट बनाती है, अन्यथा हिंदी के माँझी तो कब का इसे डुबो दिए होते| संयोग ही कहिये जो बाजार और हिंदी की मैत्री विज्ञापन, मनोरंजन के माध्यम से इसे फैलाव दे रहे हैं|
ऐसे में संस्कार और विचार के स्तर पर भाषाओं को संचार और व्यवहार के अनुकूल बनाना ही होगा, अन्यथा भाषाई स्वाधीनता की पूंजी को बचाए रखना कठिन होगा|