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डॉ. तारा की ग़ज़ल –पुस्तक, 'बज़्म-ए –हस्ती', जो आप, हम, तथा समाज और विश्व पर आधारित है| यूँ कह सकते हैं, कि बज़्म-ए-हस्ती, मानव समूह से जुड़ा हुआ एक जीवन यात्रा है| यह पुस्तक, प्यार, मोहब्बत, आशा, निराशा और दर्द की भावना पर आधारित है, जो प्रत्यक्ष व यथार्थ न होकर भी सच्चाई की ओर इशारा करती है| जैसे इनकी एक ग़ज़ल है:
"रूह कालिब में दो दिन का मेहमान है
कफस में बंद ज्यों शौके गुलिस्तान है"
इनकी ग़ज़लें प्यार-मोहब्बत की महत्ता में सूने आसमान की काल्पनिक उड़ानें भरी हैं, तो कभी अँधेरे से टकराती हुई, सूरज की रोशनी तक को अपनी सहेली बनाई हैं| जिसे युग की सार्थकता से हम इनकार नहीं कर सकते| जहाँ तक मेरा विश्वास है, इनकी ग़ज़लें एहसास की उस दुनिया से भी हमारी मुलाक़ात करने में सक्षम हैं, जिसे लोग अपना स्तित्व और दुनिया कहते हैं|
डॉ. तारा, इस ग़ज़ल-संग्रह में, हमें अपनी ग़ज़लों द्वारा उन रंगों से भी परिचय कराने की भरपूर कोशिश की, जिसमें पूर्ण रूपेण सफल भी हुई हैं, जिसमें शहर- गाँव, धूप-छाँव, आँधी-तूफ़ान, रिश्ते-नाते की मंजरनामा भी है| डॉ. तारा का मानना है, ग़ज़ल, लोक-भावना और लोक-नाद का दर्पण और बेवसी की चित्कार होती है, जो सुंदर शब्दों में ढलकर फड़कती है| इसके साथ ही ग़ज़ल, भूली- बिसरी यादों और वादों की नोवेल होती है, जिसमें मिस्री घुली प्रेम की बातें भी होती हैं|
इनकी ग़ज़लों को पढ़ते वक्त, कभी- कभी तो ऐसा महसूस होता है, इनमें से कुछ ग़ज़लें, डॉ. तारा के निज दर्द और उदासी की भावनाओं पर आधारित हैं|
सब मिलाकर, डॉ. तारा की बेमिसाल लेखनी की मार्मिकता और भावुकता, से भरी हर ग़ज़ल, सजीव हो उठती है| गज़लकार तारा को ऐसी ग़ज़ल-संग्रह, हम पाठकों को पढ़ने देने के लिए, अनेकों धन्यवाद!