क्या याद करूँ

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By डॉ. तारा सिंह

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भावना की सजीव मूर्ति, डॉ. तारा सिंह का साहित्यिक परिचय जितना दिया जाय, वह उतना आयाम लेगा, कि आसमान की ऊँचाई और चंद्रमा की कलाएँ फीकी पड़ जायेंगी| आज साहित्याकाश की आत्मा बनकर सौर मंडल पर, इनकी कुल पैंतालिस कृतियाँ सुशोभित हैं, जिनमें कविता-संग्रह, ग़ज़ल संग्रह, उपन्यास, कहानी -संग्रह, निबंध सरिता आदि सम्मिलित हैं| 'क्या याद करूँ', डॉ. तारा के साहित्याकाश का चौथा तारा है, जिसका शब्द, शिल्प, भाव, भाषा और अंतरवेदना की सृष्टि अत्यंत सूक्ष्म, बारीक और हृदयहारी है| जो बाहरी और भीतरी, दोनों ही उपादानों से युग संघर्ष को प्रतिस्थापित करता है| इसमें जरा भी संशय नहीं कि उपन्यासकार, डॉ. तारा ने इस उपन्यास की रचना अंतरगता के एकांत धरातल पर गढ़ा है|
डॉ. तारा का यह उपन्यास, आपसी रिश्ते के चटकते डोर की एक ऐसी कहानी है, जिसका दूसरा कोई मिसाल संभव नहीं है| इसमें रिश्ते के जितने रूप, जितनी आकृतियाँ और जितनी उपमा-उपमाएँ, जितनी विषयपरक और आत्मगत संवेदनाएँ हैं, जितने बिम्बों और जितनी आनुभूतिक जिजीबिषामय उक्तियों से रचनाकार ने अभिव्यक्ति प्रदान की है, वह सिद्ध करती है, कि यह उपन्यास देश और राष्ट्र की परिधि में समाकर नहीं रह सकता| क्योंकि इस उपन्यास को रचनाकार ने कहानी के शब्दों को अपनी धारणा, स्मरण आदि मानसी वृतियों से ऐसा संरक्षण प्राप्त है, जिसकी छाया में रहकर, यह उपन्यास, प्रसिद्धि की चोटी, पर राम की उम्र लेकर मानव समाज में, सदा ही जिंदा रहेगा|

क्या याद करूँ