Safed Parinda

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By Moeen Nizami

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कहानी और बनी आदम का साथ बहुत पुराना है। इंसान की यह लायक़े-मुहब्बत हमजोली कहानी; हमारे पुरखों के क़दीमतरीन इज़हारी पैरायों में से एक है और हज़ारों साल के बाद भी इसकी मासूमाना तरो-ताज़गी इसी तरह बरक़रार और इसकी तिलस्माती दुनिया में लोगों की वालेहाना दिलचस्पी इसी तरह बहाल है। बिलकुल ऐसे ही जैसे हमें आज भी नन्हे-मुन्ने बच्चों का हुस्न और उनकी सादगी अपनी तरफ़ खींचती है और महारतों और तकल्लुफ़ात से महफ़ूज़ बहुत से जज़्बे और चीज़ें हमारे दिलो-दिमाग़ से अपनी एहमियतो-अफ़ादियत आज भी मनवाती रहती हैं। अव्वल-अव्वल कहानियों का भी एक ही घराना था। एक ही माहौल, एक ही गर्दो-पेश। वही ज़रूरतें, ख़्वाहिशें, ख़ुशियां, ग़म और वही ख़ौफ़, अंदेशे और उम्मीदें। उस महदूद सी दुनिया में बड़ी वुसअत थी। वहाँ कायनात की हर चीज़ हंसती बोलती थी। हैवानात हों या नबातात, जमादात हों या ग़ैर मर्रइ मख़लूक़ात, सभी कहानियों की दुनिया में सुनते बोलते और इंसानी दुख दर्द में सांझ रखते थे। कहानियों के ख़ालिक़ मुख़्तलिफ़ मसाइल की बुनियाद पर जब हिजरतें करने लगे और मुख्तलिफ़ इलाक़ों में नए समाज और नई बिरादरियों को तशकील देने लगे तो इन के ज़ादे-सफ़र में इन महकती हुइ कहानियों की पोटलियां भी थीं। यही वजह है कि दुनिया भर की लोक कहानियों में बहुत से वाक़्याती व किरदारी मुश्तरिकात मौजूद मिलते हैं। कई बार ये इश्तराक बिलकुल हैरतज़दा भी कर देता है। हमें ये कहानियाँ इसलिए भी अच्छी लगती हैं कि इनके वाक़ेआत में ज़्यादा उलझाव और अंदाज़े-बयान में ज़्यादा पेचीदगी नहीं है। ख़ैर और शर की तयशुदा अलामतें हैं जो अमूमन वाज़ेह तौर पर आपस में बरसरे-पैकार रहती हैं। इन कहानियों में ख़ैर ही को हत्तमी ग़लबा नसीब होता है और आख़िरी फ़तह सच ही की होती है। दुख और तकलीफ़ का दौरानिया अक्सर मुख़्तसर होता है। छोटी-छोटी ख़्वाहिशें पूरी हो जाने की मसर्रतें बड़ी-बड़ी होती हैं। हर मुसीबत में कोई न कोई सहारा देने वाला मिल जाता है और आख़िरकार इत्मिनान की व राहत की सरशारी में कहानी का इख़्तेताम हो जाता है। कहानीकारों के मुशाहेदातो-तज्रबात में रोज़ अफ़ज़ूं रंगारंगी मालूमात में ग़ैरमामूली इज़ाफ़े और तरजीहात के हमागीर तग़य्युरो-तबद्दुल के साथ-साथ कहानियों के लज़ी व मानवी मवाद और असालीबे-इज़हार में भी फैलाव और गहराई आती गई लेकिन इनका बुनियादी सांचा कमो-बेश यकसाँ ही रहा। लोक कहानियों के सरचशमे से आलमी असातीर 'मज़ाहिबो-रूहानियात और शेरो-अदब भी जी भर के सैराब हुए। लोक कहानियां ख़ूब फली-फूलीं और वक़्त गुज़रने के साथ-साथ इन में तरह-तरह की महारतें बरूए-कार लाई गईं। अफ़साना, नावेल, ड्रामा, दास्तानवी मसनवियां और दौरे-जदीद की कार्टून फ़िल्में और वीडियो गेम्ज़ इन्ही की तरक़्क़ी-याफ़्ता सूरतें हैं। लोक कहानियों की अहमियत, इनकी फ़िक्री-ओ-हैइयती दरजाबंदी, इनके मख़सूस निज़ामे-अलामात और इनकी तवारीख़ी, तहज़ीबी, नफ़सियाती और अदबी तफ़हीम के ज़िम्न में दुनिया भर में काफ़ी तहक़ीक़ी काम हुआ है और तक़रीबन तमाम बड़ी ज़बानों के बेहतरीन दिमाग़ों ने इस शोबा-ए-तहक़ीक़ में गरांक़द्र किताबें और मज़ामीन लिखे हैं। जुनूबी एशिया में तक़रीबन सारी ज़बानों की लोक कहानियों पर ईरानी कहानियों के गहरे असरात हैं। ख़ुसूसन पंजाब के देहातों में दम तोड़ती हुई बहुत सी कहानियां तो ईरानी लोक-कहानियों की डार ही की बिछड़ी हुई कूंजें लगती हैं। हमारे हां अपनी इस मीरास को महफ़ूज़ करने की संजीदा इजतेमाई कोशिशें नहीं हुईं। इनफ़रादी सतह पर इक्का दुक्का क़ाबिले-तारीफ़ काम ज़रूर हुए हैं लेकिन ईरान में लोक-कहानियों की जमा आवरी और इनसे मुताल्लिक़ तहक़ीक़ी व तजज़ियाती मुतालेआत की तारीख़ सात आठ से ज़ाइद अहम किताबें सामने आ चुकी हैं। ईरानी अकाबिरे-इल्मो-दानिश ने अपने इस तहज़ीबी सरमाए को महफ़ूज़ करने और इसे मौज़ू-ए-नक़द-ओ-नज़र बनाने में हमेशा गहरी दिलचस्पी ली है। मुहम्मद अली जमाल ज़ादा - सादिक़ हिदायत और मुनीर रवानी पुर जैसे दास्तानवी अदब के अज़ीम नाम हों - अहमद शामलो जैसे रुजहान साज़ शायर या जलाल सत्तारी जैसे मुहक़्क़िक़ दानिशवर सभी ने इस अदबी व सक़ाफ़ती कारए-ख़ैर में नुमायाँ किरदार अदा किया है। मुईन निज़ामी

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