Mahabharat Ke Baad

ebook

By Bhubneshwar Upadhyay

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कहते हैं कि 'जो महाभारत में नहीं है वो भारत में नहीं है।' क्योंकि महाभारत का वैचारिक, सामाजिक और पारिवारिक फलक इतना व्यापक और अक्षुण्य है कि हर बार कुछ शेष रह ही जाता है। इसी धारणा से प्रभावित होकर लेखक ने महाभारत को एक अलग ही दृष्टिकोण से देखा, समझा और महसूस किया है। किताब में महाभारत के युद्ध के बाद उपजे हालात को कारण, कार्य और परिणाम के एक आत्मविश्लेषणीय शाब्दिक धागे से बाँधा है। साथ ही युद्ध के बाद बचे पांडुपुत्रों के अतिरिक्त धृतराष्ट्र, गांधारी, भीष्म, कुंती, द्रौपदी, विदुर आदि के मनःस्ताप और आत्ममंथन को प्रेम, घृणा, महत्वाकांक्षा, स्वार्थ, त्याग, प्रतिशोध आदि के सभी रूपों में चित्रित करते हुए उस धार्मिक जड़ता पर भी प्रश्नचिन्ह लगाया है, जिसे तोड़ते हुए युद्ध के कारणों को मिटाया जा सकता था। शिल्प और भाषायी सामर्थ्य से इसके भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पक्षों को उभारने के साथ-साथ रचना को पठनीयता और संप्रेषणीयता प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई है।

Mahabharat Ke Baad