Samaj, Jismein Main Rahata Hoon/समाज, जिसमे मैं रहता हूँ

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By नरेन्द्र कोहली

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नरेंद्र कोहली जितना अपनी रचनाओं की कथा-वस्तु और उसके प्रवाह के लिए जाने जाते हैं, उतना ही अपने विचारों की स्पष्टता के लिए भी। उन्हें प्राय: यह सुनने को मिलता है कि लोग उनसे बात करने से डरते हैं। जाने वे क्या कह दें। उनका मानना है कि 'हमें हमेशा सत्य बोलना चाहिए। 'बोलना चाहिए,' समाज ऐसा कहता तो है, लेकिन अधिकांश लोगों को उसे सुनने का साहस नहीं होता। अधिकतर लोग वही बोलते हैं जो दूसरे सुनना चाहते हैं। किंतु ये ही छोटी-छोटी बातें जिन्हें हम अधिक महत्‍व नहीं देते अथवा आवश्यक नहीं समझते, वे हमारे व्यक्तित्व का दर्पण होती हैं। समाज, जिसमें मैं रहता हूँ, लेखक के इसी दृष्टिकोण को दर्शाती है। नरेंद्र कोहली के लेखन और जीवन से जुड़े खट्टे-मीठे अनुभवों का यह संस्मरणात्मक ताना-बाना रोचक भी है और गंभीर भी। इसमें व्यंग भी है और निश्छलता भी। यह जीवन का सत्‍य भी है, और साक्षात् स्‍वयं जीवन भी। कोहलीजी की सशक्त लेखनी ने इसे और प्रखर तथा सजीव बना दिया है।
Samaj, Jismein Main Rahata Hoon/समाज, जिसमे मैं रहता हूँ