Main Maseeha Nahin/मैं मसीहा नहीं

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By सोनू सूद

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कभी-कभार ब्रह्मांड का कोई छोटा सा संकेत इंसान को उसके जीवन का उद्देश्य ढूँढ़ने में मदद कर देता है। अगर अभिनेता सोनू सूद एक मशहूर हस्ती के रूप में अपने शानो-शौकत से भरे जीवन को तवज्जो देते रहते और सिर्फ रिमोट कंट्रोल से अपनी उदारता दर्शाते, तो वह कभी भी भारत के प्रवासी मजदूरों के दर्द से रूबरू नहीं होते या कभी यह नहीं समझ पाते कि भोजन का महज़ एक पैकेट कभी भी किसी मजदूर को घर भेजे जाने के इंतज़ाम का विकल्प नहीं हो सकता। कोविड-19 महामारी के समय राष्ट्रव्यापी लॉकडॉन के दौरान जब गरीब मजदूरों के झुंड का झुंड अपने सुदूर गाँवों की तरफ रवाना हुआ, तो उनके माता-पिता का सिखाया हुआ सेवा का संस्कार सोनू सूद के अंदर जाग उठा और वे तुरंत हरकत में आ गए। उन्होंने सामने आकर मोर्चा संभाला और दुखी-पीड़ित लोगों के पास पहुँचे। उन्होंने समर्पित लोगों की टीम बनाई और देश और विदेश से भी लोगों को उनके घर लौटाने का इंतज़ाम किया। ऐसा करके उन्होंने हज़ारों असहाय और ज़रूरतमंद श्रमिकों की मदद की। इस तरह एक मानवतावादी मिशन के तौर पर उनका घर "भेजो अभियान" शुरू हुआ। इसके लिए उन्होंने चार्टर्ड फ्लाइट, बसों और ट्रेनों को सेनिटाइज़ करवाया और उसका ख़र्च वहन किया। दुनिया भर के लोगों से आ रही दुख भरी फोन कॉल्स को सुनने और जवाब देने का उन्होंने इंतज़ाम करवाया। जल्द ही वह अभियान नौकरी दिलवाने, चिकित्सा सुविधा मुहैया करवाने और श्रमिकों को शैक्षणिक सहायता मुहैया करवाने में तब्दील हो गया। फिल्मी पर्दे का वह खलनायक वास्तविक जीवन में लोगों के सामने एक कद्दावर नायक की तरह प्रकट हुआ। अपने संस्मरण मैं मसीहा नहीं (आई एम नो मसीहा का हिंदी अनुवाद) में सोनू सूद मोगा से मुंबई तक की अपनी असाधारण यात्रा अनुभवों को वरिष्ठ पत्रकार और लेखिका मीना के. अय्यर के शानदार लेखकीय कौशल के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। यह ईमानदार, प्रेरक और दिल को छूने वाली कहानी सोनू सूद की है और उन लोगों की है जिनके जीवन को वह लगातार परिवर्तित करने के अभियान में जुटे हुए हैं।
Main Maseeha Nahin/मैं मसीहा नहीं