Urdu Ke Mashhoor Shayar Josh Malihabadi Aur Unki Chuninda Shayari (उर्दू के मशहूर शायर जोश मलिहाबादी और उनकी चुनिंदा शायरी)
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By Narender Govind Behl
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उर्दू अदब के मशहूर शायर जोश मलीहाबादी की पैदाइश 5 दिसम्बर 1898 में मलीहाबाद में हुई। जोश मलीहाबादी का नाम उन शायरों में लिया जाता है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ कलम के जरिए आवाज बुलंद की । आपके जरिये लिखे गए एक एक शे'र आम इन्सान के नारे में तब्दील हो गए। इसी वजह जोश मलीहाबादी को इंकलाबी शायर कहा जाता है। यूँ तो आपका नाम शबीर हसन खान है लेकिन ग़ज़लों और नज़्मों में तखल्लुस 'जोश' और अपने इलाके का नाम मलीहाबादी भी जोड़ दिया जिससे उन्हें जोश मलीहाबादी कहा जाने लगा।
आपकी शुरुआती पढ़ाई घर पर ही हुई, उर्दू और फारसी आपने घर ही सीखी। अंग्रेजी तालीम के लिए लखनऊ गए और बाद में आगरा के सेंट पीटर्स कॉलेज गए। आप छ: महीने रवीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन में भी रहे। लेकिन आपके वालिद बशीर अहमद खान के इंतकाल के बाद आगे की पढ़ाई जारी नहीं रह सकी। जोश 23-24 में ही बगावती तेवर वाली शायरी लिखने लगे थे।
जोश को उर्दू साहित्य में उर्दू पर मजबूत पकड़ और उर्दू व्याकरण के बेहतरीन इस्तेमाल के जाना जाता है। जोश मलीहाबादी ने बहुत सी किताबें लिखी। 1921 में आपका पहला संग्रह आया जिसमें 'शोला और शबनम', 'जूनून ओ हिकमत', 'फ़िक्र ओ निशात' है। आपकी आत्मकथा 'यादों की बारात' और नज्में 'जंगल की शहजादी', 'गुलबदनी' देश-विदेश में खूब मशहूर हुई। जोश को वतन से इतना प्यार था कि पाकिस्तान जाकर वह कभी खुश नहीं रहे। वे हमेशा भारत को याद करते जिसे इस नज़्म से समझा जा सकता है —
'जनों फर्ज़न की व बस्तगी ने वतन सी चीज को आखिर छुड़ाया
रहा मैं हिन्द की नजरों में मुस्लिम बना काफ़िर जो पाकिस्तान आया ।'