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कुशवाहाकान्त हिन्दी उपन्यास जगत पर पिछले 75 वर्षों से छाये हुए हैं। उनकी सरल सशक्त लेखनी ने हिन्दी उपन्यास जगत में हलचल मचा दी थी। उनके उपन्यासों में जहां श्रृंगार रस का अनूठा समन्वय है, वहीं क्रान्तिकारी लेखनी व जासूसी कृतियों में भी उनका कोई सानी नहीं है। उन्होंने कुल 35 उपन्यास लिखे हैं। वह आज भी उतने ही लोकप्रिय हैं जितने 40 वर्ष पूर्व थे। उनका प्रत्येक उपन्यास पढ़कर पाठक उनके पूरे उपन्यास पढ़ना चाहता है। उसी उपन्यासकार की एक उत्कृष्ट रचना आपके हाथों में है। डायमण्ड पाकेट बुक्स कुशवाहाकान्त के उपन्यासों को आप तक पहुंचा कर गर्व अनुभव कर रहा है। कुशवाहाकान्त का उपन्यास 'लाल रेखा' हिन्दी के लोकप्रिय उपन्यासों में मील का पत्थर है जिसने बड़े पैमाने पर हिन्दी के पाठक बनाए। 1950 में लिखे इस उपन्यास में उस समय हिन्दी उपन्यास की जितनी धाराएँ थीं, सभी को एक साथ इसमें समाहित किया गया है। रोमांस, रहस्य, राष्ट्रवाद और सामाजिक मूल्यों से ओत-प्रोत कथानक एक मानक की तरह है। देश की आजादी के संग्राम की पृष्ठभूमि पर लिखे इस उपन्यास में लाल और रेखा की प्रेम कहानी है लेकिन इसमें प्रेम से बढ़कर देश-प्रेम दिखाया गया है। देशहित व्यक्तिगत हितों से अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। जहाँ एक ओर निज और समाज के हितों की बात है वहीं दूसरी ओर स्त्री और पुरुष की समानता की बात भी है। लाल रेखा अपने विषय के लिए ही नहीं, बल्कि काव्यात्मक भाषा के लिए भी जाना जाता है। यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 75 साल पहले था।
कुशवाहा कान्तं जिनका पूरा नाम कान्तं प्रसाद कुशवाहा था, 34 वर्ष की छोटी उम्र में ही हिन्दी साहित्य जगत को बहुत कुछ दे गये। वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। जहाँ एक ओर उन्होंने रोमांटिक और सामाजिक उपन्यास लिखे वहीं दूसरी ओर जासूसी और क्रान्तिकारी उपन्यासों का सृजन किया। निस्संदेह लाल रेखा उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास है। इसके अलावा उनके कुछ नामी उपन्यास br>पारस, विद्रोही सुभाष, आहुति, नीलम, मंजिल इत्यादि हैं। उन्होंने कई पत्रिकाओं का सम्पादन भी किया। 1952 में एक जानलेवा आक्रमण में साहित्य का यह चिराग बुझ गया।