
Sign up to save your library
With an OverDrive account, you can save your favorite libraries for at-a-glance information about availability. Find out more about OverDrive accounts.
Find this title in Libby, the library reading app by OverDrive.

Search for a digital library with this title
Title found at these libraries:
Library Name | Distance |
---|---|
Loading... |
उर्मिला की लेखकीय दिशा को मैं उनकी कहानियों से भी जानती हूँ। वह छत्तीसगढ़ के इलाक़े में रहती हैं जो आदिवासी बहुल इलाक़ा है। आदिवासी संस्कृति को दूर से देखकर नहीं समझा जा सकता, जब तक कि उसमें रचा बसा न जाये। हमारे लेखन जगत में यह धारणा भी स्वागत योग्य मानी जाती है कि आप जहाँ भी दो चार दिन के लिए गये वहाँ के माहौल पर कहानी लिख दी और लेखक उस समाज और संस्कृति का ज्ञाता होने का दम भरने लगा। मुझे ऐसा लेखन रचना की संख्या बढ़ानेवाला ही लगता है। उर्मिला शुक्ल के लेखन में ऐसी बात नहीं है कि कथा सतह पर चलती दिखाई दे। मैंने इनकी कहानी जब 'अस्ताचल का सूरज' पढ़ी थी तब ही मुझे लगा था कि यह अलग क़िस्म की लेखिका है।
आज के हिन्दी साहित्य में जब कहानियाँ पढ़ने के लिए मिलती हैं तो स्त्री विमर्श की पताका ज़ोर शोर से फहराई जाती है जिसके तहत स्त्री के स्वाभिमान को कम, पुरुषों से होड़ लेने को ज्यादा तरजीह दी जाती है। उदाहरण के लिए अगर बच्चे के बड़े हो जाने के बाद अपना जीवन बिताने के लिए, बढ़ती हुई अवस्था में माँ को शादी कर लेनी चाहिये। ऐसी कथायें जब मेरे सामने आती हैं तो मुझे उर्मिला द्वारा लिखी कहानी याद आती हैं जहाँ स्त्री पुरुषों के छलों और 'उपकारों' को समझती हुई अपने ऊपर भरोसा करती है। उर्मिला ने तब मुझे चौंका दिया था जब यह दर्ज किया कि छत्तीसगढ़ की एक किशोरी तीजन बाई बनने की ख्वाइश रखते हुये ऐसे तमाम संघर्षों से गुज़र जाती है, जो क़दम क़दम पर उसका कड़ा इम्तिहान लेते हैं।अन्त में वह अपनी पंडवानी मंडली खड़ी करती है, वह भी लड़कियों और स्त्रियों के बूते के साथ।
'बिन ढ्योढी का घर' स्त्री की ज़िन्दगी पर लागू नियमों की कसावट के विरुद्ध अपने आप को परिभाषित करता है। किसी दूसरे के स्वीकार या नकार को झेलते निबाहते नायिका सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती है। समाज के हिसाब से गड़बड़ यह है कि औरत के मन में सामाजिक कठघरों के ख़िलाफ़ सवाल उठें, या वह मन ही मन तर्क करे। ऐसी स्त्री दोषी और अपराधी की कोटि में डाल दी जाती है। एक समय ऐसा आता है जब स्त्री के सवाल अपने ही मन को शूल बनकर छेदने लगते हैं और तब आर या पार जाने का महूरत सामने आ खड़ा होता है। इस उपन्यास की नायिका कात्यायनी स्वाभिमान से बड़ा सम्बल किसी दूसरे से नहीं पाती। उसका आत्माभिमान ही उसका साथी और सहयोगी है। यह सब कैसे घटित हुआ, यह तो आप उपन्यास में ही पढ़ेंगे। कात्यायनी का छोटी से बड़ी होने का आख्यान आप के सामने है जो कहता कि हमारे इस समय की कहानियों में उपन्यासों में स्त्री के लिए सांत्वना का सम्बल विवाह है या लिवइन रिलेशन है। मेरे अनुसार यह ज़िन्दगी का मक़सद नहीं है। आत्मनिर्भरता पर भरोसा रखने का साहस बनाये रखना होगा बेहतर ज़िन्दगी के लिए।
–मैत्रेयी पुष्पा
उर्मिला शुक्ल
जन्म - 20-9-1962
शिक्षा - एम.ए., पीएच.डी., डी.लिट् (छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला डी. लिट्)
लेखन - छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों ही भाषाओं में लेखन।
हिन्दी प्रकाशन - कहानी संग्रह - 1. फूलकुँवर तुम जागती रहना 2. मैं, फूलमती और हिजड़े। कविता संग्रह - 1. इक्कीसवीं सदी के द्वार पर 2. गढ़ रही है औरत। यात्रा संस्मरण - यात्रायें उस धरा की - जो धरोहर हैं हमारी। हंस - सिर्फ कहानियाँ सिर्फ महिलायें अगस्त 2013 कहानी बँसवा फुलाइल मोरे अँगना प्रकाशित और चर्चित। समीक्षा - 1. छत्तीसगढ़ी लोकगीतों में नारी-चेतना से विमर्श तक, 2. हिंदी कहानी में छत्तीसगढ़ी संस्कृति। 3. स्वातन्त्र्योत्तर हिंदी कहानी।
छत्तीसगढ़ी प्रकाशन – कहानी संग्रह 1. गोदना के फूल (छत्तीसगढ़ में महिला लेखन के क्षेत्र में प्रथम प्रकाशित संग्रह)। कविता संग्रह–1. छत्तीसगढ़ के अउरत। खंड काव्य - महभारत में दुरपति । अनुवाद– रचनायें पंजाबी, गुजराती, मराठी कन्नड़ और उर्दू में अनुदित
e-mail : urmilashukla20@gmail.com