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तंत्र साधनाएं और उनका रहस्यमय संसार मुझे हमेशा आकर्षित करता रहा है,उसी संसार की एक काल्पनिक यात्रा पर आने के लिए आपको आमंत्रित करता हूँ ......
यह यात्रा आपको रोमांचक अवश्य लगेगी ......
इस कथा का नायक मैं यानि अघोरानंद 26 वर्षीय एक गृहस्थ युवा था । जो शासकीय सेवा में था और छत्तीसगढ़ राज्य के दुर्ग में रहता था । मेरी पत्नी का युवावस्था में ही देहांत हो गया । उसके देहांत के बाद मैं बेहद अकेला पड़ गया । कुछ समय बाद मेरे जीवन में अजीब अजीब सी घटनाएं घटी । मेरे गुरु ने मुझे अघोर दीक्षा प्रदान की और मुझे अघोरानंद नाम दिया । जिसके बाद मेरा साधनात्मक जीवन प्रारंभ हुआ ।
साधनात्मक जीवन में मुझे अलग-अलग प्रकार के अनुभव मिले । जिसमें कई बातें ऐसी हैं जो नहीं लिखी जा सकती और कई बातें ऐसी हैं जो अविश्वसनीय है । बहुत सारी बातें ऐसी हैं जो बेहद रोमांचक हैं और जिसे पढ़ने में आपको आनंद भी आएगा । ऐसी ही कुछ घटनाओं को गुरु के आशीर्वाद से और भगवती महानील सरस्वती की कृपा से शब्द श्रंखला में बांधने का प्रयास किया है जो आपको पसंद आएगा ।
इस कथा में सब कुछ मेरी कल्पना है , इसलिए इसके किसी भाग का अनुकरण करने की कोशिश न करें क्योंकि कल्पना और वास्तविकता में बहुत फर्क होता है ....
साधनाओं का क्षेत्र गुरु गम्य माना गया है इसलिए इस क्षेत्र में कुशल गुरु के मार्गदर्शन में ही उतरें , अन्यथा आपको नुक्सान हो सकता है |
अंत में .............यह कथा मनोरंजन के लिए लिखी गयी एक रचना है उसका आनंद लें ...
एक दिन सुबह गुरुदेव के दिव्य बिंब की उपस्थिति पूजन कक्ष में हुई । उन्होंने निर्देशित किया कि पश्चिम बंगाल में रामपुर में स्थित तारापीठ जाकर तारा साधना करनी है ......
भगवती तारा को 10 महाविद्याओं में से एक माना जाता है । यह महाविद्या साधना बाकी सभी महाविद्याओं से ज्यादा कठिन मानी जाती है । इसके प्रमुख साधक महर्षि वशिष्ठ माने जाते हैं । इनकी साधना भगवान बुद्ध तथा उनके अनुयाई भी अलग-अलग स्वरूपों में करते हैं । बौद्ध धर्म मे प्रमुख रूप से पूजी जाने वाली पौधे देवी मणिपद्मा मां भगवती तारा का ही स्वरूप मानी जाती है ।
मैं तारापीठ की ओर निकल पड़ा । तारा-पीठ पश्चिम बंगाल में है । भगवती तारा के मंदिर की स्थिति ठीक श्मशान में है । मंदिर का द्वार श्मशान की ओर ही खुलता है । यह एक जागृत श्मशान है ।
तारापीठ में जब मैं पहुंचा तब सुबह के 10 बजे थे । मैं भगवती के मंदिर में पहुंचा । उनके दिव्य दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ । तारापीठ के सामने ही श्मशान है । तारापीठ के शमशान की यात्रा लोग बाकी शमशान की तरह नहीं करते बल्कि एक सिद्ध पीठ की तरह करते हैं । वहां पर लोगों का आना जाना लगा रहता है ।
यह श्मशान कहने को श्मशान है । लेकिन वहां पर बाबाओं के अलग-अलग झोपड़े जो सामान्यतः टेंट के जैसे होते हैं और ताल पत्री या वैसे किसी चीज से बने होते हैं काफी संख्या में है ।
उन्हीं के बगल से निकलता हुआ श्मशान में उस जगह पहुंचा जहां चिता जलती है ।
वहां पर मैंने एक अद्भुत दृश्य देखा......
आज तक मैंने जितने भी श्मशान देखे हैं उसमें लकड़ी रखी जाती है । लकड़ी के ऊपर शव रखा जाता है और उसके ऊपर फिर से लकड़ी रख दी जाती है । उसके बाद आग लगाई जाती है जिससे शव पूरी तरह चारों ओर से जल जाए । लेकिन ! तारापीठ श्मशान में मामला कुछ अलग ही था .....
वहां पर कोयले जैसे ढेर था लकड़ियां थी और लकड़ियों में सबसे ऊपर एक पुरुष का मृत देह उत्थान पड़ा हुआ था । अर्थात पीठ जमीन की ओर थी । उसका कंधे से नीचे का हिस्सा लकड़ी के ऊपर था और कंधे के ऊपर का हिस्सा लटका हुआ था । आग जल रही थी । आजू बाजू में दो डोम खड़े थे । उनके हाथ में बड़े-बड़े बांस थे । जो लगभग 10 से 12 फुट लंबे रहेंगे ।