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मेरे ग़ज़ल संग्रह के बारे में आदरणीय शरद तैलंग जी के विचार-
जिस प्रकार कोई विमान पृथ्वी से उड़ान भरने के लिये पहले मंथर फिर तेज़ गति से हवाई पट्टी पर चलता है फिर एकाएक ऊपर उठते हुए आकाश को छूने लगता है, कल्पना जी की रचना प्रक्रिया भी कुछ इसी तरह की है जिसे हम लोग ज़मीन से उठकर आसमान को छूता हुआ देखते जा रहे हैं।
इनकी ग़ज़लों में विभिन्न विषयोँ की भरमार है जो इनकी समाज, देश, धर्म, राजनीति, पाखण्ड, अराजकता, भक्ति भाव, प्रदूषण, पर्यावरण, मानवीय रिश्तोँ, पर्व और न जाने कितने अनेक विषयोँ पर पाठकों को एक ज्ञान प्रदान करने वाली पाठशाला के समान प्रतीत होती है, जिन्हेँ पढकर ऐसा लगता है कि साहित्य अर्थात सबके हित का असली मंत्र इन ग़ज़लों में ही समाया है। इनकी ग़ज़लों के किसी शे'र को यहाँ उद्धृत करना मेरे लिये अत्यंत कठिन कार्य प्रतीत हो रहा है क्योंकि ग़ज़लोँ मे इतनी विविधता है कि मुँह से सिर्फ 'वाह वाह' ही निकल सकती है। आप इन्हें कोई भी भले वह नीरस ही क्यों न हो, विषय दे दीजिये उस पर इनकी कलम एक सरस काव्य रचना का निर्माण कर देती है।
अत्यंत अल्प समय में ग़ज़ल जैसी विधा की बारीकियों को आपने जिस प्रवीणता से आत्मसात किया तथा उन्हें समझा है वैसी निपुणता तो आज के दौर के कई जाने माने ग़ज़लकारों में भी नहीं पाई जाती है। यह बात सिर्फ इनकी ग़ज़लों के बारे में ही नहीं बल्कि साहित्य के अन्य विविध छंदों जैसे, गीत, नवगीत, दोहे, कुण्डलिया आदि पर भी इनकी कलम कमाल करती है।
इनकी रचनाओँ मेँ भाषा के प्रयोग, छन्दों के कथ्य तथा शिल्प पर पैनी पकड, ज्ञान वर्धक एवं सहज भाषा, तथा उद्देश्यपूर्ण विषय पाठकोँ को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं और ऐसा प्रतीत होता है कि हम किसी संत का प्रवचन सुन रहे हैं।