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जो तुम कहो को आप एक शायराना गुलदस्ता कह सकते हैं | लेकिन, इस गुलदस्ते के फूल गुज़रते वक़्त के साथ और भी ताज़ा, खुशनुमा, और शोख़ होते जाते हैं | प्रशान्त की लिखी शायरियाँ, जो पिछले बीस सालों से इंटरनेट और अखबारों में जगह बनाती रही हैं, अब एक किताब की शक्ल में ढल चुकी हैं | हर गीत या नज़्म अपने आप में एक कहानी का सा मजमूं पेश करती है | सीधे सादे अलफ़ाज़ को लेकर इस ख़ूबसूरती से अहसासों और जज़्बात की माला में पिरोया गया है के हर शायरी खुद ब खुद पढ़ने वाले के ज़हन में एक तस्वीर सी खींच देती है और कहानी अपने आप बयां हो जाती है |
शायर ने गहरी और बड़ी बातों को बयां करने के लिए जिन लफ़्ज़ों को चुना है, वो आसानी से समझ आते हैं | और यही वो अदा है जो इस दीवान की ख़ूबसूरती को हर दिल में मुकाम पाने के लिए मजबूर कर देती है | इतने रंग लेकर जो गीत लिखे गए हैं, वो यक़ीनन आपकी ज़िन्दगी के हमसफ़र साबित होंगे |