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दास धर्म के धार्मिक ग्रंथ "यशवंती निराधार" में सहज अवतार महाराज दर्शन दास जी की इलाही वाणी "यशवंती निराधार-धाम पहला" के रूप में दर्ज की गई है और दास धर्म की दूसरी पातशाही महाराज चड़विंदा दास तीर तरक्कड़ी जी की वाणी "धाम दूजा" के रूप में संग्रहित की गई है। यशवंती निराधार-धाम पहला की तरह ही "धाम दूजा" की वाणी भी रब्बी नूर, रब्बी प्रकाश, रब्बी वरदानों और रहमतों से भरपूर है। क्योंकि गुरू साहब के कथनानुसार यह वाणी उन्हें सतगुरू महाराज दर्शन दास जी की असीम कृपा स्वरूप प्राप्त हुई है। जो उन्होंने स्वंय उनके अंतर बस कर उनके मुखारविंद से साध-संगत के, संसार के कल्याण के लिये, संसार को दिशा देने हेतु उच्चरित करवाई है।महाराज चड़विंदा दास तीर तरक्कड़ी जी द्वारा रचित वाणी, उनकी शबद रचनायें, उनके सर्वज्ञ होने का, उनके विराट स्वरूप, उनकी पूर्णता का प्रतीक भी हैं। इसी लिये इस इलाही वाणी को भली प्रकार समझने के लिये साध-संगत ने सविनय आग्रह किया, जिसे गुरू साहब ने स्वीकार करते हुए अपनी कुछ शबद रचनाओं पर "सत्संग" के रूप में साध-संगत पर कृपा, रहमत की अमृत बरखा की है जो इस पुस्तक में प्रकाशित किये जा रहे हैं। आशा करते हैं कि समूह साध संगत जो इन सत्संगों का सामने बैठ कर श्रवण नहीं कर सकी है वह जीव, और आगे आने बाले समय में जो जीव इन पुस्तकों को पढ़ेंगे, और गुरू साहब द्वारा बताये गये मार्ग का अनुसरण करेंगे वह जीव गुरू साहब द्वारा कृपा, रहमत पा कर उस "परमजोत" का एहसास कर सकेंगे। उस अमृतव को प्राप्त कर सकेंगे। अपने जीवन को आनन्दमयी बना कर "परम पद्" की प्राप्ति कर सकेंगे।

एहसास-ए-परमजोत