हृदय की देह पर
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मैंने 13 वर्ष की अवस्था से हृदय की अभिव्यक्ति को कागज पर उतरना शुरु कर दिया था। हृदय में उगे भाव कभी पद्य बन कर बहते तो कभी गद्य बन कर अपनी कहानी कहते। जब कभी अतीत हावी होता तो कलम से साथ साथ आँखें भी टपकती और पन्नें चितते जाते। यह क्या विधा थी नही जानती थी किन्तु दुबारा पढ़ने पर कुछ अलग सा महसूस होता तो अलग उठा कर रख देती। इस प्रकार बिना कोई शास्त्र पढ़े अपनी विधाएं स्वयं बनाती गयी और सतत लिखती रही।
मैंने 13 वर्ष की अवस्था से हृदय की अभिव्यक्ति को कागज पर उतरना शुरु कर दिया था। हृदय में उगे भाव कभी पद्य बन कर बहते तो कभी गद्य बन कर अपनी कहानी कहते। जब कभी अतीत हावी होता तो कलम से साथ साथ आँखें भी टपकती और पन्नें चितते जाते। यह क्या विधा थी नही जानती थी किन्तु दुबारा पढ़ने पर कुछ अलग सा महसूस होता तो अलग उठा कर रख देती। इस प्रकार बिना कोई शास्त्र पढ़े अपनी विधाएं स्वयं बनाती गयी और सतत लिखती रही।