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‘कसक’ के कई अर्थ हैं सरल शब्दों में इसका मतलब मानसिक / भावनात्मक “अस्वस्थता” या हल्का दर्द है जो किसी भी अतीत या कुछ दुखद अनुभव के स्मरण के कारण लंबे समय तक जीवित रहता है.‘कसक’ निविदाकारों (या हल्के लेकिन मधुर दर्द) से पीडित होने के बारे में भी है, जो फंतासी या साथी की इच्छा आिद में रहने वाले या जीवित प्रेम के कारण आवर्ती रहता है.अकेलापन, परेशानी, या निराशा की भावनाएं भी ‘कसक’ उत्पन्न करती हैं.आशा मित्तल ने इन भावनाओं को विशेष रूप से मिहलाओं में, शब्दों के प्राकृतिक प्रवाह के साथ सरल भाषा में पकड़ा है। इस पुस्तक में उनकी किवताओं, विशेष रूप से, ‘माँ की कसक’, और ‘हे प्रिय! तुम आ ना पाए’, कसक शीर्षक के लिए पूर्ण न्याय करें.पुस्तक में लेखक की एक संकर्षित आत्मकथा भी शामिल है जो कि भारतीय समाज की कई मिहलाओं के लिए प्रेरणादायक हो सकती है जो कष्टप्रद वैवाहिक क जीवन के कारण पीडित हैं.