Mansarovar--Part 3 (मानसरोवर--भाग 3)

ebook Mansarovar

By Premchand

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मानसरोवर - भाग 3

विश्‍वास

नरक का मार्ग

स्त्री और पुरुष

उध्दार

निर्वासन

नैराश्य लीला

कौशल

स्वर्ग की देवी

आधार

एक आँच की कसर

माता का हृदय

परीक्षा

तेंतर

नैराश्य

दण्ड

धिक्‍कार

लैला

मुक्तिधन

दीक्षा

क्षमा

मनुष्य का परम धर्म

गुरु-मंत्र

सौभाग्य के कोड़े

विचित्र होली

मुक्ति-मार्ग

डिक्री के रुपये

शतरंज के खिलाड़ी

वज्रपात

सत्याग्रह

भाड़े का टट्टू

बाबाजी का भोग

विनोद

———————————

उन दिनों मिस जोशी बम्बई सभ्य-समाज की राधिका थी। थी तो वह एक छोटी-सी कन्या-पाठशाला की अध्यापिका पर उसका ठाट-बाट, मान-सम्मान बड़ी-बड़ी धन-रानियों को भी लज्जित करता था। वह एक बड़े महल में रहती थी, जो किसी जमाने में सतारा के महाराज का निवास-स्थान था। वहाँ सारे दिन नगर के रईसों, राजों, राज-कर्मचारियों का ताँता लगा रहता था। वह सारे प्रांत के धन और कीर्ति के उपासकों की देवी थी। अगर किसी को खिताब का खब्त था तो वह मिस जोशी की खुशामद करता था। किसी को अपने या अपने संबंधों के लिए कोई अच्छा ओहदा दिलाने की धुन थी तो वह मिस जोशी की आराधना करता था। सरकारी इमारतों के ठीके; नमक, शराब, अफीम आदि सरकारी चीजों के ठीके; लोहे-लकड़ी, कल-पुरजे आदि के ठीके सब मिस जोशी ही के हाथों में थे। जो कुछ करती थी वही करती थी, जो कुछ होता था उसी के हाथों होता था। जिस वक्त वह अपनी अरबी घोड़ों की फिटन पर सैर करने निकलती तो रईसों की सवारियाँ आप ही आप रास्ते से हट जाती थीं, बड़े-बड़े दुकानदार खड़े हो-होकर सलाम करने लगते थे। वह रूपवती थी, लेकिन नगर में उससे बढ़कर रूपवती रमणियाँ भी थीं; वह सुशिक्षिता थी, वाक्चतुर थी, गाने में निपुण, हँसती तो अनोखी छवि से, बोलती तो निराली छटा से, ताकती तो बाँकी चितवन से; लेकिन इन गुणों में उसका एकाधिपत्य न था। उसकी प्रतिष्ठा, शक्ति और कीर्ति का कुछ और ही रहस्य था। सारा नगर ही नहीं; सारे प्रांत का बच्चा-बच्चा जानता था कि बम्बई के गवर्नर मिस्टर जौहरी मिस जोशी के बिना दामों के गुलाम हैं। मिस जोशी की आँखों का इशारा उनके लिए नादिरशाही हुक्म है। वह थिएटरों में, दावतों में, जलसों में मिस जोशी के साथ साये की भाँति रहते हैं और कभी-कभी उनकी मोटर रात के सन्नाटे में मिस जोशी के मकान से निकलती हुई लोगों को दिखायी देती है।

Mansarovar--Part 3 (मानसरोवर--भाग 3)