स्वर्गविभा ऑनलाइन त्रैमासिक हिंदी पत्रिका जून २०२५
ebook ∣ स्वर्गविभा त्रैमासिक हिंदी पत्रिका
By tara
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मानव जाति की अमूल्य धरोहर उसकी भाषा है| उसकी कीमत पर, किसी भी प्रकार का विकास एवं उपलब्धि उसे स्वीकार्य है| अपनी भाषा में सोचने, एवं जीने के अधिकार से वंचित रखना, उसकी अस्मिता को खंडित करने जैसा है| यह एक अपराध से कम नहीं है| भाषाई संस्कार उसे अपने समाज व देश से जोड़े रखता है| भाषा लगातार उन्नत होती, आगे की ओर अग्रसर होती, अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ती, मनुष्य के भीतर कई वैचारिक वातायन का निर्माण करती है जिससे उत्कृष्ट परम्परा व सभ्यता के सार्वभौमिक स्वरूप को निखारने की राह आसान होती है|
भाषाई आत्मनिर्भरता के बिना कोई भी समाज, या देश सम्पूर्णता में आत्मनिर्भर नहीं हो सकता| स्वभाषा, उस कुंदन के समान है, जिसकी कीमत नहीं आंकी जा सकती| उत्कृष्ट भाषाई...