चक्रवर्ती राजा भोज (Chakravati Raja Bhoj)
ebook ∣ पवारी/पोवारी बोली (Pawari/Powari Dialect)
By डॉ. ज्ञानेश्वर टेंभरे (Dr. Dnyaneshwar Tembhare)
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मध्यकालीन चक्रवर्ती राजा भोज ने एक छत्री भारतीय गणतंत्र की स्थापना की थी। विशाल साम्राज्य प्रस्थापित किया था। भारतीय संस्कृति, कला, विज्ञान, शिक्षा चरम सिमा पर विकसित हुई थी। उसका राज्य सुसंस्कृत, सुसम्पन्न एवम् सुशील जनमानस का चरित्र बन चुका था। जन-जन का व्यक्तित्व व धर्म कर्म आध्यात्म एवं वैभव से अलंकृत था। नीति एवम् नैतिकता जीवन के अभिन्न अंग बन गये थे। राजा भोज ने सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य जैसे विशाल, समृद्ध, सुसंस्कृत साम्राज्य प्रस्थापित किया था। राजा भोज सम्राट अशोक जैसा महान राजा था क्योंकि उसने जिन आदर्शो का प्रजा में प्रचार किया, उसका स्वयम् पालन भी किया। वह विक्रमादित्य के समान विद्वान एवम् महाकवियों का आश्रय दाता था। ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के विशेषज्ञों से उसने अपनी राज्य-सभा को विद्वत सभा में ढ़ाल दिया था। उसने संस्कृत एवं प्राकृत में ८४ ग्रंथ लिखे। विद्वानों से विविध ग्रंथों की रचना करवाई। अनेक संग्रह-ग्रंथ प्रस्तुत किये। वह संगीत कला का भी प्रकांड ज्ञाता था। समर-शास्त्र, धर्मशास्त्र, नीति शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र, भाषा शास्त्र, चिकित्सा, पशु-चिकित्सा, कलाशास्त्र, वास्तुशास्त्र, वास्तुशिल्प, वायुयान शास्त्र जैसे अनगिनत शास्त्रों का ज्ञाता था। वह हिन्दु धर्म का संरक्षक था। सोमनाथ, केदारनाथ, रामेश्वर आदि मंदिरों का नवनिर्माण कर उसने धर्म-पीठों को सशक्त बनाया था। वह स्वयम् भगवान शिव एव देवी काली का महान भक्त था। नालंदा तक्षशिला समकक्ष भोज ने धार में "सरस्वती-सदन" (भोज शाला) एवम् उसी तरह उज्जैनी एवं मांडू में विश्वविद्यालयों की स्थापना की थी। वह कुशल यौद्धा, सजग प्रशासक, न्यायप्रिय, लोकप्रिय तथा दानी राजा था। कहा गया है कि उसके राज्य में खाली पेट सोनेवाला या चोरी करनेवाला एवम् दुराचारी ढुंढने से भी नही मिलता था।
राजा भोज की जीवनी, कार्य, नीति, साहित्य-सम्पदा तथा आदर्शों को जन-जन तक पहुंचाने के उद्देश्य से "चक्रवर्ती राजा भोज" रचना सादर प्रस्तुत है।
- डॉ. ज्ञानेश्वर टेंभरे, नागपुर.