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तमिलनाडु में जन्मे रविशंकर को ये नाम उनके पिता ने आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेते हुए रखा था. 17 वर्ष की उम्र में फीजिक्स की डिग्री हासिल करने वाले रविशंकर ने आध्यात्म का रास्ता चुना. वे महर्षि महेश योगी के शिष्य बने. महर्षि महेश योगी की मृत्यु के बाद रविशंकर ने अपने नाम के आगे श्री श्री जोड़ लिया और 'आर्ट आफ लिविंग' नाम की एक बड़ी संस्था खड़ी कर ली. जबकि 'आर्ट आफ लिविंग' उनके गुरू महर्षि महेश योगी की खोज थी. रवि शंकर कहते हैं कि सांस शरीर और मन के बीच एक कड़ी की तरह है जो दोनों को जोड़ती है. इसे मन को शांत करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. ये मंत्र दुनिया भर के उनके शिष्यों के मन में बैठ गया. इराक से लेकर पाकिस्तान तक की सरकारें उन्हें अपने यहां आमंत्रित करने लगीं. श्रीश्री ने शांति दूत की अपनी ऐसी छवि बनाई कि वे तमाम विवादित मामलों में मीडिएटर का काम करने लगे. हालांकि इसे लेकर वे खुद भी कई विवादों में घिरे लेकिन हर विवाद के साथ उनके भक्तों की गिनती में इजाफा ही हुआ. आज श्रीश्री रविशंकर धर्म, आध्यात्म और योग के क्षेत्र में सारी दुनिया में जाना पहचाना नाम है.