संत सिपाही

ebook जो लड़े दीन के हेत

By टी. सिंह

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ये कहानी एक ऐसे महापुरुष की है जिन्होंने ना केवल जीवन भर बुरी ताकतों के साथ संघर्ष किया और देश और धर्म की रक्षा की बल्कि जीवन भर अपने ज्ञान और भाषा क्षमताओं का प्रयोग करते हुए ऐसे महान लेख और ग्रन्थ लिखे जो हमेशा के लिए अमर हो गए।

बहुत से महापुरुषों और महान लोगों के बारे में आपने पढ़ा और सुना होगा लेकिन दुनिया में सिर्फ एक ही महापुरुष हुए हैं जो ना केवल योद्धा थे बल्कि उच्च कोटि के संत, दार्शनिक, और ज्ञान का प्रसार करने वाले लेखक थे।

पूरा जीवन औरों के लिए बलिदान करने वाले इन महापुरुष ने धर्म और समाज की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया था यहां तक के अपनी माँ, अपने चार बच्चों, और अपने पिता को भी सत्य और धर्म के मार्ग पर चलते हुए बलिदान होते हुए देखा।

हम आज बात कर रहे हैं दशमेश पिता, संत सिपाही, सर्वंश दानी श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज की। सबसे पहले गुरु साहेब के मुखारबिंद से निकले कुछ शब्दों से शुरू करते हैं जो आज भी हर सिख लगभग उच्चारण करता है और खुद को भाग्यशाली मानता है के उसके गुरु इतनी प्रेरणादायी वाणी छोड़कर गए हैं दुनिया के लिए:

"हे परमात्मा, मुझे ऐसा वरदान दीजिये
के मैं कभी भी अच्छे कर्म करने से पीछे ना हटूँ
के मैं जब युद्ध में जाऊं मैं कभी भयभीत ना होऊँ। और संकल्प के साथ विजयी बनूँ।
के मुझे ये लोभ हो के मैं आपकी ही प्रशंसा के बारे में कहूँ।
और जब जीवन का अंतिम समय आये मैं युद्ध भूमी में ही अपने प्राण त्यागूँ!

—गुरु गोबिंद सिंह

देह शिवा बर मोहे ईहे, शुभ कर्मन ते कबहूँ न टरूं
न डरौं अरि सौं जब जाय लड़ौं, निश्चय कर अपनी जीत करौं,
अरु सिख हों आपने ही मन कौ इह लालच हउ गुन तउ उचरों,
जब आव की अउध निदान बनै अति ही रन मै तब जूझ मरों ॥२३१॥

—गुरु गोबिंद सिंह

दिव्या योद्धा, कवि, संत सिपाही, सर्वंश दानी, सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज ने एक ऐसे पंथ की स्थापना की जिसकी प्रशंसा शताब्दियों से पूरी दुनिया में होती चली आयी है। गुरु साहेब ने अपने अद्वितीय साहस और ज्ञान से धर्म के मार्ग को प्रकाशित किया और अपनी अडिग भावना और भक्ति से असंख्य आत्माओं को प्रेरित किया।

विषय-सूची

परिचय
प्रारंभिक जीवन
परिवार
खालसा पंथ के संस्थापक
लेखक के रूप में
योद्धा के रूप में
युद्ध और लड़ाइयाँ
गुरु गोबिंद सिंह और मुगल
गुरु गोबिंद और अन्य धर्म
ज़फ़रनामा
परिवार में शहीद
अंतिम दिन
लोकप्रिय संस्कृति में गोबिंद सिंह जी
यादगार पंक्तियाँ
संत सिपाही

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