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A novel that brings the Kashi alive. Stories rooted in their times, places and people and still able to evoke the timeless feeling. Stories so powerful that they have transcended literature to become part of culture.
कहानियों और संस्मरणों के चर्चित कथाकार काशीनाथ सिंह का नया उपन्यास है काशी का अस्सी । जिन्दगी और जिन्दादिली से भरा एक अलग किस्म का उपन्यास । उपन्यास के परम्परित मान्य ढाँचों के आगे प्रश्नचिह्न । जब इस उपन्यास के कुछ अंश 'कथा रिपोर्ताज' के नाम से पत्रिकाओं में छपे थे तो पाठकों और लेखकों में हलचल–सी हुई थी । छोटे शहरों और कस्बों में उन अंक विशेषों के लिए जैसे लूट–सी मची थी, फोटोस्टेट तक हुए थे, स्वयं पात्रों ने बावेला मचाए थे और मारपीट से लेकर कोर्ट–कचहरी की धमकियाँ तक दी थीं । अब वह मुकम्मल उपन्यास आपके सामने है जिसमें पाँच कथाएँ हैं और उन सभी कथाओं का केन्द्र भी अस्सी है । हर कथा में स्थान भी वही, पात्र भी वे हीμअपने असली और वास्तविक नामों के साथ, अपनी बोली–बानी और लहजों के साथ । हर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे पर इन पात्रों की बेमुरव्वत और लट्ठमार टिप्पणियाँ काशी की उस देशज और लोकपरंपरा की याद दिलाती हैं जिसके वारिस कबीर और भारतेन्दु थे ! उपन्यास की भाषा उसकी जान हैμभदेसपन और व्यंग्य– विनोद में सराबोर । साहित्य की 'मधुर मनोहर अतीव सुंदर' वाणी शायद कहीं दिख जाय ! सब मिलाकर काशीनाथ की नजर में 'अस्सी' पिछले दस वर्षों से भारतीय समाज में पक रही राजनीतिक–सांस्कृतिक खिचड़ी की पहचान के लिए चावल का एक दाना भर है, बस !