Satyarth Prakash

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By Maharishi Dayanand Saraswati

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यह प्रश्न बहुत साधारण है और इसका उत्तर उतना ही जटिल है कारण हम न तो सदैव दुःखी रहते हैं न सुखी रहते हैं। कई बार हम चिंतित होते हैं तो कई बार कुछ प्रसंगों को लेकर हमारे मन में जिज्ञासा उत्पन्न होती है कि दुनिया में हम क्यों आये? हम आये तो जीवन को किस तरह जियें ? हम दुःखी क्यों होते हैं? क्या है चिंता? क्या है धर्म? क्या है पूजा उपासना के अर्थ ? आखिर वो भगवान कैसा है जिसकी सब पूजा करते हैं? यही नहीं कई बार हम जब ज्यादा परेशान होते हैं तो ज्योतिष और बाबाओं के चक्कर में भी आ जाते हैं इन सब सवालों के जवाब यहां नहीं दिये जा सकते, लेकिन "सत्यार्थ प्रकाश का हर एक समुल्लास (अध्याय) आपके ज्ञान और शंकाओं का निवारण एक गुरु की तरह करता है जो सिर्फ सच्ची शिक्षा देता है । माना कि आज का जीवन आधुनिक है, हम भौतिक युग में जी रहे हैं, हमारे हाथों में कम्प्यूटर है, महंगे फोन हैं, हम आधुनिकता की बातें करते हैं लेकिन जब हम किसी आर्थिक, सामाजिक या पारिवारिक परेशानी में आते हैं तब हम हजारों साल पुराने अन्धविश्वास में जाने अनजाने में फंस जाते हैं। सर्वविदित है कि 140 सालों में लाखों लोगों का जीवन परिवर्तित करने वाला, सत्य और असत्य की विवेचना करने वाले महानतम ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश के रचनाकार महर्षि दयानन्द सरस्वती मूल रूप से गुजराती थे लेकिन इसके बावजूद उन्होंने "सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिन्दी भाषा में की। क्योंकि महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने इस ग्रन्थ की रचना किसी एक धर्म के लाभ-हानि के लिए नहीं की अपितु मानव मात्र के कल्याण और ज्ञान वर्धन के लिए की ताकि हम निष्पक्ष होकर सत्य और असत्य का अन्तर जान सकें और असत्य मार्ग को छोड़कर सत्य मार्ग की ओर बढ़ सकें क्योंकि उनका मानना था कि दुःख का कारण असत्य और अज्ञान है ।

Satyarth Prakash