Bhaloo Dada Chale Car Mein (भालू दादा चले कार में)

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By Dr. Giriraj Sharan Agrawal

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बच्चों को आसपास की प्रकृति और जीव-जंतुओं से किसी-न-किसी रूप में जुड़ना हमेशा सुख पहुंचाता है। धूप, हवा, चिड़िया, तितली, बिल्ली आदि की हरकतें उसे गुदगुदी रहती है। यदि इन पर केंद्रित कुछ ऐसी कविताएँ उन्हें मिल जाएँ जो पुरानी कविताओं का दोहराव भर न हो तो उन्हें अधिक आता है। अमाल जी का ध्यान भी इस ओर गया है। "बिल्ली बोली एक अती कविता है। 'चूहे की शैतानी' में भी चूहे को मिली सीख बच्चों को सुख पहुँचाने में सक्षम है।
गिरिराजशरण अग्रन्दल जी ने दो- तीन बातों का विशेष ध्यान रखा है। एक तो बता के रूप में प्रायः बच्चे को ही सामने लाए है, दूसरे भाषा को कहीं भी बोझिल नहीं बनने दिया है और तीसरे सय और गंयता को पूरी तरह संजोया है। अभिव्यक्ति- कौशल की दृष्टि से कहीं-कही आलम की बहती नदिया जैसे मनभावन चित्र भी मिल जाएँगे।
-दिविक रमेश

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