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दर्शन तर्कपूर्ण , विधिपूर्वक एवं क्रमबद्ध विचार है जिसके द्वारा सत्य एवं ज्ञान की खोज की जाती है । दर्शन ही किसी देश की सभ्यता और संस्कृति को गौरवान्वित करता है । एक सुसंस्कृत , परिपूर्ण एवं सुखमय जीवन जीने के लिए दर्शन का परिशीलन (ध्यानपूर्वक अध्ययन) नितांत आवश्यक है । दर्शन दूरदृष्टि , भविष्य दृष्टि तथा अन्तर्दृष्टि के साथ जीवन - यापन की शिक्षा देता है। परम्परागत दर्शन अपने काल के अनुरूप था और पूर्ण था, लेकिन आज के समय में उसकी प्रासंगिकता में ह्रास आया है । आज विज्ञान का युग है। विज्ञान के प्रति लोगों की आस्था बढ़ती जा रही है और दर्शन के प्रति आस्था घटती जा रही है।अत:आज एक ऐसे दर्शन की आवश्यकता है जो प्रकृति समरूपता नियम , कारण - कार्य नियम ,निरीक्षण , प्रयोग एवं आनुवंशिक सिद्धान्त पर आधारित हो । आज नित्य नये-नये विषयों के आविष्कार हो रहे हैं।नवीन विषयों की ओर लोगों का आकर्षण बढ़ता जा रहा है।नवीन विषय बच्चों के व्यक्तित्व को आज के परिवेश के अनुरूप गढ़ने में असमर्थ है । आज शिक्षा द्वारा बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण की बात कही जा रही है , लेकिन बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण तब तक अधुरा रहेगा जब तक बच्चों को आज के परिवेश के अनुरूप प्रारम्भ से ही वैज्ञानिक दर्शन की शिक्षा न दी जाय। वैज्ञानिक दर्शन के अभाव में भारत की नयी पीढ़ियॉं अंतहीन आशा, अंतहीन विश्वास औरअंतहीन आस्था की मृगतृष्णा में पड़कर अपनी ऊर्जा नष्ट करते रहेंगे और इस संसार के विकास की दौड़ में पिछड़ते जायेंगे ।