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सुरभी घोष 'संजोगीता' का जन्म पश्चिम बंगाल के एक गांव में हुआ और परवरिश हिमाचल की सुंदर पहाड़ियों और छत्तीसगढ़ में हुई। अब वो बैंगलोर में निवास करती हैं। लिखना उन्होंने बचपन से ही शुरू कर दिया था। उन्होंने बैंगलोर के कई मंचों पर अपनी कविताएं पढ़ीं हैं। साथ ही कई कविता संग्रहों और पत्रिकाओं में उनकी कहानियां और कविताएं छपी हैं। उन्होंने अपने लेखन को अपने माता पिता को समर्पित करते हुए अपना लेखक उपनाम 'संजोगीता' चुना है। जो उनके माता पिता के नाम से जुड़कर बना है (संजय कांति घोष और गायत्री घोष)।
ये किताब यादों का एक पिटारा है जो उन्होंने अपने माँ के जाने के बाद लिखी। ये कहानी यथार्थ और कल्पना से मिलकर बने कुछ संवाद हैं जो माँ के चले जाने के बाद एक बेटी अपनी माँ से करती है, चिट्ठियों के रूप में। ये सारी चिट्ठियां वो अधूरे संवाद हैं जो हो सकते थे, लेकिन कभी हुए नहीं। ये चिट्ठियां धीरे धीरे एक कहानी का रूप लेती हैं, एक माँ और बेटी की कहानी। एक औरत की कहानी। उन सारे सवालों की कहानी जो शायद दुनिया की हर बेटी अपनी माँ से करना चाहती है कभी न कभी।