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इसी उपन्यास से :
सहसा उसकी दृष्टि ठिठक गई। उसने देखा, उसके समीप जाने वाली पगडण्डी पर वैशाली चली आ रही है। पीठ पर लकड़ी का गट्ठर था। काफी भारी था, शायद इसीलिए व हझुककर चल रही थी। कल रात की चमक-दमक तथा आज की सजड़ी हुई अवस्था में ऐसा अन्तर था कि पहचानना कठिन था। पिछली रात एक स्वप्न था और यह एक हकीकत। परन्तु इस हकीकत में, इस पहाड़ी वेशभूषा में भी उसकी सुन्दरता छिपाये न छिपती थी। मुदड़ी में मानो बहुमूल्य लाल था। दूर से ही उसकी गुलाबी कनपटियों और गर्दन पर नन्हीं-नन्हीं पसीने की बूंदें चांदनी में ंशबनम समान चमक रही थी। जतिन उसकी ओर से एक पल भी अपनी दृष्टि नहीं हटा सका। आंखें नीची फिर वह चुपचाप उसके समीप से गुजरी तो उसके शरीर से निकली पसीने की भीनी-भीनी सुगन्ध उसके नथुनों को तर कर गई। उसका मन चाहा वह पसीने की इन नन्हीं-नन्ही बूंदों को अपनी कलम की नोक द्वारा चुन ले। इन्हें कविता में जबान देकर सारे संसार के समक्ष रख दे। संसार को बताए कि यह नन्हीं-नन्हीं कलियां अपने शरीर से पसीने की जगह खून बहाने के पश्चात् अपने आपसे पूर्णतया सन्तुष्ट है। निराश पाने के बाद भी जीवन का आशा लगाए बैठी है, परन्तु अपने सीमित दायरे से बाहर निकलकर वह संसार की जहरीली चहल-पहल की नदी नजर की शिकार हो जाना कभी पसन्द नहीं करती।