
Sign up to save your library
With an OverDrive account, you can save your favorite libraries for at-a-glance information about availability. Find out more about OverDrive accounts.
Find this title in Libby, the library reading app by OverDrive.

Search for a digital library with this title
Title found at these libraries:
Library Name | Distance |
---|---|
Loading... |
ये कहानी है उस दौर के एक प्रेमी जोड़े की जब फ़ोन , इंटरनेट जैसी कोई सुविधा नहीं थी । ये वो दौर था जहाँ कागज़ ही अपने दिल का हाल बयान करने का एकमात्र साधन था । बेहरोज़ हॉस्टल से पढाई पूरी कर के अपने घर लौटता है । अचानक उसकी मुलाकात अपने ही इलाके की नाज़ से हो जाती है । पहली नज़र में ही नाज़ की आँखे बेहरोज़ को उस से मोहब्बत करने पर मजबूर कर देती है । मगर दोनों के लिए ये मोहब्बत निभाना इतना आसान नहीं होता क्योकि दोनों के आसपास का समाज अपनी सोच से इतना सिमित है की मोहब्बत जैसी चीज़ उन सबके समझ नहीं आती । कहानी में अलग-अलग रिश्ते अपना असली रंग वक़्त-वक़्त पर दिखाते है । आइये देखते है क्या बेहरोज़ और नाज़ हमेशा के लिए एक हो पाएंगे ? क्या वो समाज की झूठी ऊँच-नीच को दरकिनार करके अपनी मोहब्बत को कोई अंजाम दे सकेंगे ?
"सब लोगो का ऐसा सख्त लहज़ा देखकर नाज़ कमरे की खिड़की पर लटक कर फूट-फूट कर रोने लगी "अब्बा जी ....आपका ये कैसा प्यार है ?.... जिसमे आप मेरी हर छोटी चीज़ मेरी पसंद से करते रहे....मगर बदले में मुझसे मेरे हमसफर को चुनने का हक़ ही छीन लिया ? .....ये कैसी रिवायतें है जहाँ बच्चे के पैदा होते ही माँ-बाप खुद को उसका खुदा मानकर उसका मुस्तक़बिल (भविष्य) तय कर देते है " नाज़ की इन बातो को सब सुन तो रहे थे मगर हर कोई नज़रअंदाज़ करके अपने-अपने कमरे में पड़ा रहा । कुछ और देर तक नाज़ इसी तरह रोती-फिफियाती रही मगर उस घर में ऐसा लग रहा था जैसे वहां सब बहरे हो गए हो ।
इन्हीं सब बातो में रात का 2.30 बज चुका था । नाज़ बिस्तर पर पड़ी-पड़ी बेहरोज़ और अपनी मुलाकातें याद कर रही थी । उसने मन ही मन में ठान लिया था की अब ख़ुदकुशी ही उसका आखिरी आसरा है । वो मन ही मन सोच रही थी "बेहरोज़ ..मैंने बहुत कोशिश की .....मगर शायद तुम्हारा और मेरा मिलना इस ज़िंदगी में मुमकिन नहीं ....मैं अपनी इस ज़िंदगी को बचाने के चक्कर में किसी और की नहीं हो सकती .....ऐसा करने से तो मुझे मर जाना ही गवारा लग रहा है ...." सोचते हुए बेख्याली में नाज़ मुँह से बोल कर बड़बड़ाने लगी "मुझे माफ़ कर देना बेहरोज़ ...मुझे माफ़ कर देना "