ज़िंदा लाश

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By प्रकाश भारती

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अमरनाथ नागपाल – एम. एस. सी. फाइनल का छात्र तीन साल की सजा काटने के बाद अब सजायाफ्ता मुजरिम बन चुका था...क्योंकि दौलतमंद माँ–बाप के इकलौते बेटे और अपने जिगरी दोस्त को उसकी पागलपन भरी खतरनाक मुहीम में शामिल होने से इंकार नहीं कर सका...चोरी की कार में दोनों पैट्रोल पम्प पहुंचे...सूरज ने रिवाल्वर से कर्मचारियों को धमकी दी तो उन्होंने कैश सौंप दिया...तभी अचानक पुलिस पैट्रोल कार आ पहुंची...कर्मचारियों ने शोर मचा दिया...गोलियां चलीं...सूरज मारा गया...अमर पकड़ा गया...मुकदमा चला...अमर को तीन साल की सजा हो गयी...। जेल में...डिप्टी जेलर कुलदीप नारंग पर कुछ कैदियों ने हमलाकर दिया...अमर ने नारंग के साथ मिलकर उनका मुकाबला किया और सबको मार भगाया...नारंग दोस्त बन गया...। अमर जेल से रिहा हुआ तो नारंग ने उसके लिए नौकरी का इन्तजाम कर दिया...करीमगंज के बाहर समुद्र तट पर एक ईसाई परिवार में...।

पीटर गोंसाल्विस–दौलतमंद, जवान, हैंडसम, शिक्षित और क़ानून का ज्ञाता...एक दुर्घटना में पीठ में आयी गंभीर चोट से शरीर का निचला हिस्सा बेजान हो जाने की वजह से व्हील चेयर में कैद होकर रह गया था...अपने एक दोस्त कुलदीप नारंग की सिफारिश पर सजायाफ्ता अमर को नौकरी दे दी...।

रीना गोंसाल्विस–पीटर की पत्नी...कान्वेंट की एजुकेटेड, जवान, सुन्दर, बाएं गाल पर जख्म के निशान के बावजूद आकर्षक...लेकिन खुले विचारोंवाली होते हुए भी चुपचाप रहनेवाली और मिजाज से बहुत ही सर्द...।

मार्था गोंसाल्विस–पीटर की माँ...थोड़ी गर्म मिजाज...सास के रूप में गुस्सैल...रीना को मनहूस माननेवाली अधेड़ औरत...।

जेनी आंटी–पीटर की दूर के रिश्ते की बुआ...बातूनी स्वभाववाली भली अधेड़ औरत...हफ्ते में दो बार करीमगंज से मिलने आती थी...।

अमर अपने हालात से संतुष्ट था...लेकिन इस सारे सिलसिले में एक बात पहले दिन से ही उसे कचोटने लगी थी–रीना जैसी हसीना का अपाहिज की पत्नी होना...उसे रीना से हमदर्दी होने लगी और न जाने क्यों पीटर से ईर्ष्या...फिर हमदर्दी खिंचाव में बदली और वह रीना के विचारों में खोया रहने लगा...।

जल्दी ही उसने नोट किया उसके प्रति रीना का व्यवहार सामान्य सा होना शुरू हो गया...रीना बेतकल्लुफ होने लगी...नजदीकियां आने लगी...फिर धीरे–धीरे बढ़ती गयीं...और एक रात तमाम दूरियां ख़त्म हो गयीं...।

अमर को जो यौन सुख उस रात मिला वो उसकी कल्पना से भी परे था...। रीना मानो ऐसा नशा थी जिसे एक बार पाने के बाद बार–बार पाये बगैर नहीं रहा जा सकता...।

जल्दी ही अमर को पता चला–पीटर शराब के नशे में किसी हैवान की तरह उसके साथ ज्यादती करता था...पीटर के अपाहिजपन से उससे जो हमदर्दी उसे हुई थी वो नफरत में बदलने लगी...एक रात रीना ने खुलकर अपने प्यार का इजहार किया और हमेशा के लिए उसे पाने की ख्वाहिश जाहिर कर दी...वह भी हमेशा के लिए उसे पाने के ख्वाब देखने लगा...।

दोनों की चाहत एक ही थी लेकिन दोनों यह भी जानते थे–रीना शादीशुदा थी...पीटर की बीवी थी...यानी उनकी चाहत पूरी होने में सबसे बड़ी रुकावट था–पीटर गोंसाल्विस...। पीटर ने किसी भी कीमत पर न तो उससे तलाक देना था और न ही उसे लेने देना था...।

रुकावट कैसे दूर हो ? इस सवाल पर सोच विचार आपसी सलाह मशविरा शुरू हुए...योजनाएं बनी...बिगड़ी...अंत में एक फाइनल हो गयी...उसे अमल में लाने का फैसला कर लिया...।

मोटे तौर पर योजना थी–करीमगंज से पीटर के बीच हाउस तक आने के लिए समुद्र के साथ साथ बनी वो सड़क घुमावदार और लगातार चढाईवाली थी...उस पर ब्लाइंड टर्न भी था...इतना खतरनाक कि दुर्घटना हो जाना मामूली बात थी...वहां समंदर की साइड में काठ की जो पुरानी रेलिंग लगी थी उसके निचले सिरे गले हुए थे...अगर पीटर की भारी लिंकन कार उससे टकरा दी जाए तो वो रेलिंग को तोड़ती हुई सीधी नीचे जा गिरेगी और पानी में डूब जायेगी...रीना और अमर उससे निकलकर तैरकर ऊपर आ जायेंगे...अपाहिज पीटर निकल नहीं सकेगा और डूबकर मर जाएगा...।

योजना अमल में लायी गई...लिंकन रेलिंग से टकराई...रेलिंग टूटी...कार नीचे गिरी और पानी में डूबकर एक चट्टान पर जा टिकी...लेकिन अनपेक्षित व्यवधान के रूप में वहां मौजूद स्कूल बस के कारण योजना पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी...पीटर की माँ मार्था मर गयी...पीटर बच गया...।

अमर को नौकरी से निकाल दिया गया...कुलदीप नारंग ने एक बार फिर मदद की...उसकी सिफारिश और रीना की कोशिशों से अमर को दोबारा...

ज़िंदा लाश