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हर इन्सान यह सोचता है कि वह ज़िंदगी जी रहा है, परन्तु वो सिर्फ जिंदा होता है, ज़िंदगी को समझता नही है| वह सँसार के अनेक प्रतिबिम्ब अपने भीतर महसूस करता है और प्रतिक्रिया में उसके मन में दुःख, दर्द, क्रोध, नि राशा और ख़ुशी जैसे तमाम तरह के क्षणिक अहसास पनपते है| इन्हें समझे बिना वह सारी उमर बाहर देखते एक विशेष अहसास का स्थायित्व ढूँढ़ता रहता है| इसे वो कहता तो खुशियाँ है, परन्तु जानता नहीं है कि उसे ये चाहिये क्यूँ? किसी तरह वो अपने आप को अपने शरीर और मन से बाहर निकाल पाये तो उसकी अच्छाईयों और बुराइयों का हर प्रारूप विस्तृत रँगो में स्पष्ट नज़र आता है, अगर वह इसे समझ ले, स्वीकार कर ले तो देख सक ता है कि "वो जो होना चाहिए, वह उसके भीतर हो रहा है",.."वो जो सबसे सुन्दर है, वह उसके भीतर है,"....."वो जो खो चुका , वह उसके भीतर सजा हुआ है,",...."वो जिसे महसूस करता है, वह उसके भीतर ईश्वर बन चुका है,"......ये इतना अदभुत होता है कि वो जीवन की तीक्ष्णतम वेदना के क्षणों में भी खुशियों का स्थायित्व पाता है और हर कड़वी बात, चुभती याद पर मुस्कुराता है,..वो जी पाता है खुशियों से भरा अप्रतिम जीवन.....जिसमे वह श्रेष्ठ का सृजन करते, अपने मोक्ष की ओर जाता है,.....|